यवतमाल न्यूज (सौजन्य-नवभारत)
Yavatmal News: कुछ दिन पहले यवतमाल जिले में जिला परिषद के 62 गटों (समूहों) का आरक्षण घोषित किया गया। इस आरक्षण सूची में यह देखा गया कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) बहुल इलाकों में एक भी गट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित नहीं रखा गया है। इस कारण आदिवासी बहुल क्षेत्रों में भारी नाराजगी व्यक्त की जा रही है। सामान्य वर्ग के लिए सीटें छोड़ी गईं, लेकिन 9 तहसीलों के 41 गटों में एक भी गट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित नहीं हुआ।
इस पर आदिवासी समाज में गहरी नाराजगी व्यक्त की है और पुसद तालुका के शिलोणा गट को एसटी वर्ग के लिए आरक्षित करने की मांग करते हुए जिलाधिकारी को एक ज्ञापन सौंपा गया है। ज्ञापन में यह भी मांग की गई है कि पुसद और अन्य 41 गटों में कम से कम 8 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए छोड़ी जाएं। यह ज्ञापन देविदास डाखोरे, सुरेश धनवे, आतिष वाघमारे, संदीप आढाव और पंकज वंजारे के हस्ताक्षरों सहित जिलाधिकारी को दिया गया।
पुसद तहसील में कुल 8 जिला परिषद गट हैं। पहले इनमें से 2 गट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित रहते थे, लेकिन नई सूची में अनुसूचित जनजाति को कोई स्थान नहीं दिया गया। शिलोणा सर्कल में कुल 30,385 की आबादी में से 10,938 लोग एसटी वर्ग से हैं। इसके बावजूद यहां सामान्य घोषित किया गया है, जिसे लेकर अन्याय की भावना है।
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पुसद के साथ-साथ उमरखेड़ में 6, महागांव में 5 यानी कुल 19 गट ऐसे हैं जहां बड़ी संख्या में आदिवासी समाज है, परंतु आरक्षण न मिलने से असंतोष बढ़ गया है। आर्णी तहसील में 4 जि.प. गट हैं। खास बात यह है कि आर्णी विधानसभा क्षेत्र स्वयं जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है, फिर भी वहां एक भी गट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित नहीं रखा गया। इसी तरह दारव्हा (5 गट), नेर (3 गट), बाभुलगांव (2 गट) और वणी (5 गट) इन जगहों पर भी अनुसूचित जनजाति के लिए कोई गट आरक्षित नहीं है।
शिलोणा क्षेत्र की कुल जनसंख्या में लगभग 40% लोग अनुसूचित जनजाति के हैं। ऐसे में इस क्षेत्र को सामान्य घोषित करना आरक्षण के उद्देश्य को कमजोर करने वाला है। जिला परिषद आरक्षण करते समय जनसंख्या अनुपात के अनुसार आरक्षण दिया जाना चाहिए था, लेकिन इस प्रक्रिया में स्पष्ट त्रुटियाँ दिख रही हैं। ज्ञापन में मांग की गई है कि शिलोणा विभाग का पुनर्विलोकन कर इसे अनुसूचित जनजाति (एसटी) या महिला (एसटी) के लिए आरक्षित किया जाए। अब जिलाधिकारी क्या निर्णय लेते हैं, इस पर अनुसूचित जनजाति बहुल क्षेत्रों के मतदाताओं की निगाहें टिकी हुई हैं।