मंज़ूर कर्ज बैंक ने किया अचानक रद्द। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
यवतमाल: बैंक द्वारा पहले मंज़ूरी और फिर अचानक कर्ज रद्द किए जाने पर परेशान हुए किसान ने हार नहीं मानी। कानूनी हथियार उठाकर जब किसान ग्राहक आयोग पहुँचा, तो बैंक को तगड़ा झटका लगा। यवतमाल के किसान अशोक गुलाबचंद भुतडा की शिकायत पर जिला उपभोक्ता आयोग ने बैंक ऑफ इंडिया को फटकार लगाई है और आदेश दिया है कि ₹8.50 लाख का मंज़ूर कर्ज तुरंत दिया जाए, साथ ही मानसिक और शारीरिक तकलीफ के लिए मुआवज़ा भी चुकाया जाए।
अशोक भुतडा ने अपने खेत में कुएं की मरम्मत, समतलीकरण और सागवान व नीलगिरी के पौधों की खेती के लिए बैंक ऑफ इंडिया (दत्त चौक शाखा, यवतमाल) में कर्ज के लिए आवेदन किया था। सभी ज़रूरी दस्तावेज़ जमा करने के बाद बैंक ने उन्हें ₹8.5 लाख का कर्ज मंज़ूर किया।
भुतडा ने मंजूरी के भरोसे पर काम शुरू कर दिया — तालाब से माटी लाकर खेत समतल करवाया, JCB से लेवलिंग करवाई, और इस पर ₹3.65 लाख रुपये खुद खर्च किए। लेकिन जब वे कर्ज की राशि लेने बैंक पहुँचे, तो बैंक ने बिना स्पष्ट कारण के कर्ज रद्द कर दिया।
कर्ज रद्द करने के पक्ष में बैंक ने दलील दी कि भुतडा ने सभी दस्तावेज़ जमा नहीं किए थे, लेकिन आयोग के सामने इसका कोई भी सबूत पेश नहीं कर सकी। बैंक ने कहा कि उन्होंने “मौखिक रूप से दस्तावेज़ माँगे थे।” इस पर आयोग ने सख्त सवाल उठाया, “मौखिक रूप से दस्तावेज़ माँगना किस नियम के अंतर्गत मान्य है?” जब बैंक इसके उत्तर में कोई लिखित या वैध प्रमाण नहीं दे सकी, तो आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह किसान के साथ अन्याय है और कर्ज रद्द करने का निर्णय गैरकानूनी और अनुचित है।
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8,50,000 रुपए मंज़ूर किया गया कर्ज तुरंत दिया जाए
20,000 रुपए मानसिक व शारीरिक पीड़ा के लिए मुआवज़ा
10,000 रुपए शिकायत खर्च
ये 30,000 रुपए यदि 30 दिन में न दिए गए तो उस पर 8% वार्षिक ब्याज देना होगा
ग्राहक आयोग का यह निर्णय किसानों के लिए एक मिसाल बन गया है और उन बैंकों के लिए सीधी चेतावनी जो किसानों को मंजूरी के बाद कर्ज से वंचित करते हैं। किसान अशोक भुतडा का कहना है, “हमने कर्ज के भरोसे काम शुरू किया, पर बैंक ने पलटी मारी। अब कानून ने हमें न्याय दिलाया है। अब और किसान भी डरेंगे नहीं।”