हाई कोर्ट
Nagpur News: नागपुर सुधार प्रन्यास (NIT) की ओर से 18 जुलाई, 2025 को आदेश जारी कर आदित्य कंस्ट्रक्शन कम्पनी को किसी भी टेंडर में हिस्सा लेने से 3 वर्ष के लिए प्रतिबंधित कर दिया था। सुनवाई का मौका दिए बिना ही कम्पनी को ब्लैकलिस्ट किए जाने को चुनौती देते हुए कम्पनी की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई। इस पर सुनवाई के दौरान प्रन्यास की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कम्पनी को ब्लैकलिस्ट करने का आदेश वापस लिए जाने की जानकारी दी।
इसके बाद न्यायाधीश अनिल पानसरे और न्यायाधीश सिद्धेश्वर ठोंबरे ने प्रन्यास के इस बयान को स्वीकार करते हुए एनआईटी को इस मामले में नए सिरे से नोटिस जारी कर कार्रवाई करने की स्वतंत्रता प्रदान की। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रोहन छाबरा, अधिवक्ता एस।एन। तापडिया और प्रन्यास की ओर से अधिवक्ता जी.ए. कुंटे ने पैरवी की।
प्रन्यास की ओर से 24.38 करोड़ रुपये की लागत से ओबीसी भवन के निर्माण के लिए 5 दिसंबर, 2024 को टेंडर जारी किया गया था। इस मामले में एनआईटी द्वारा मेसर्स आदित्य कंस्ट्रक्शन कंपनी को 3 साल के लिए ब्लैकलिस्ट करने और उसकी बयाना राशि (EMD) जब्त करने के आदेश दिया था। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता छाबरा ने कहा कि एनआईटी की कार्रवाई न केवल मनमानी, अवैध है बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन भी है।
अधिवक्ता छाबरा ने कहा कि इसमें याचिकाकर्ता मेसर्स आदित्य कंस्ट्रक्शन कंपनी समेत 6 कम्पनियों ने हिस्सा लिया था। 13 मार्च, 2025 को वित्तीय बोलियां खोली गईं जिसमें आदित्य कंस्ट्रक्शन को सबसे कम बोली लगाने वाला (L-1) घोषित किया गया। टेंडर की शर्तों के अनुसार कंपनी ने 20 मार्च, 2025 को अतिरिक्त परफॉर्मेंस सिक्योरिटी के तौर पर बैंक गारंटी जमा कर दी।
विवाद तब शुरू हुआ जब एनआईटी ने 27 मार्च, 2025 को बैंक गारंटी के क्लेम पीरियड में खामी बताते हुए उसे सुधारने के लिए कहा। कंपनी ने उसी दिन तत्काल संशोधित गारंटी जमा कर दी। इसके बाद एनआईटी ने कंपनी से काम को कम दरों पर पूरा करने की एक विस्तृत योजना मांगी जबकि याचिका के अनुसार टेंडर दस्तावेजों में ऐसी कोई शर्त नहीं थी। इस बीच 18 अप्रैल, 2025 को टेंडर की 120 दिन की बोली वैधता अवधि समाप्त हो गई।
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कंपनी ने एनआईटी को सूचित किया कि उसकी पेशकश अब मान्य नहीं है और अपनी बयाना राशि व बैंक गारंटी वापस मांगी। याचिका में आरोप लगाया गया है कि इसके जवाब में एनआईटी ने देरी के लिए कंपनी को ही दोषी ठहराने की कोशिश की और पीडब्ल्यूडी के एक पुराने जीआर का हवाला दिया जो मूल टेंडर का हिस्सा नहीं था। अंततः 18 जुलाई, 2025 को एनआईटी ने कंपनी को 3 साल के लिए ब्लैकलिस्ट करने और बयाना राशि जब्त करने का आदेश जारी कर दिया।
अधिवक्ता छाबरा ने कहा कि ब्लैकलिस्टिंग जैसा कठोर कदम बिना किसी कारण बताओ नोटिस और सुनवाई का अवसर दिए उठाया गया जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। जब बोली की वैधता ही समाप्त हो चुकी थी तो एनआईटी को यह दंडात्मक कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं था। टेंडर की धारा 7.2 के तहत ब्लैकलिस्टिंग केवल तभी की जा सकती है जब बैंक गारंटी नकली या जाली पायी जाए जो इस मामले में बिल्कुल नहीं है।