मानकापुर हादसा (सौजन्य-नवभारत)
Nagpur Accident News: नागपुर शहर के मानकापुर फ्लाईओवर पर शुक्रवार को सुबह करीब 8 बजे एक भीषण सड़क हादसा हुआ। भवंस स्कूल जा रही वैन (एमएच31/ईएम-0036) और नारायणा विद्यालयम की स्कूल बस (एमएच31/एफसी-1913) की आमने-सामने जोरदार भिड़ंत हो गई। इस हादसे में 8 बच्चे घायल हो गए जिन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
हादसे में 15 वर्षीय छात्रा सान्वी खोब्रागडे और वैन के ड्राइवर रितिक घनश्याम कनौजिया (24) की दर्दनाक मौत हो गई। दोनों स्कूली वाहनों की टक्कर से छात्रों के घायल होने की खबर ने शहर में हड़कंप मचा दिया। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने मौके पर पहुंचकर जमकर नारेबाजी की। हादसे के बाद लगभग एक घंटे तक यातायात प्रभावित रहा।
स्कूल वैन छात्रों को लेकर मानकापुर फ्लाईओवर पर चढ़ ही रही थी कि तभी सामने से छात्रों को स्कूल पहुंचाकर खाली लौट रही बस ने वैन को सामने से जोरदार टक्कर मार दी। वैन के सामने का हिस्सा पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया और कांच टूटकर सामने की सीट पर बिखर गए। हादसे में वैन चालक रितिक समेत सहित 8 बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए। घटना की जानकारी मिलते ही मानकपुर पुलिस तुरंत मौके पर पहुंची और घायलों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया। 5 बच्चों को मैक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया है, वहीं 3 का इलाज कुणाल अस्पताल में जारी है।
वर्तमान में मानकापुर फ्लाईओवर के एक हिस्से पर दुरुस्ती का काम शुरू है। करीब 3 महीने से जारी इस निर्माण के लिए कोराडी से मानकापुर की ओर आने वाला हिस्सा बंद रखा गया है और सारा ट्रैफिक मानकापुर से कोराडी की ओर जाने वाली साइड से शुरू है। इसी साइड की ओर यह दर्दनाक एक्सीडेंट हुआ है। नेशनल हाईवे होने के कारण यहां से भारी वाहनों ट्रकों, बसों आदि की आवाजाही हमेशा बनी रहती है। छोटे-मोटे एक्सीडेंट हर दिन की बात हो चुकी है। इसी के नीचे व्यस्त चौराहा मानकापुर चौक है। इसके बावजूद ब्रिज पर सुधार कार्य कछुआ गति से जारी है।
यह दर्दनाक घटना एक बार फिर यह बहस छेड़ती है कि जब बच्चों की जान रोजाना के सफर में खतरे में पड़ती है तो जिम्मेदारी किसकी है?
नागपुर ही नहीं, पूरे देश में कई स्कूल आज भी अपनी बसें संचालित नहीं करते। वे बच्चों को ले जाने-लाने के लिए निजी वैन-बसों पर ही निर्भर रहते हैं। इनमें न तो अनिवार्य सुरक्षा उपकरण होते हैं जैसे स्पीड गवर्नर, जीपीएस ट्रैकिंग और न ही प्रशिक्षित चालक होते हैं जिनकी देखरेख स्कूल करता हो, जबकि स्कूल भारी-भरकम फीस वसूलते हैं तो सवाल उठता है – आखिर क्यों कई संस्थान छात्र परिवहन के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश नहीं करते?
दूसरी ओर, कई अभिभावक खर्च बचाने या सुविधा के लिए निजी वैन या शेयरिंग गाड़ियों को चुनते हैं लेकिन यह वाहन अक्सर लापरवाही से चलाए जाते हैं, ओवरलोड रहते हैं और इन पर निगरानी भी नहीं होती। अभिभावकों को भी सोचना होगा कि क्या थोड़े पैसे या समय की बचत बच्चों की जान से ज्यादा कीमती है?
स्कूल बसों के लिए सख्त सुरक्षा नियम लागू हैं जैसे सीसीटीवी, जीपीएस सिस्टम और निर्धारित स्पीड कंट्रोल। इनसे स्कूल और अभिभावक दोनों रियल-टाइम ट्रैकिंग कर सकते हैं लेकिन निजी वैन-बसें शायद ही कभी इन मानकों का पालन करती हैं। सवाल यह है कि जब स्कूल ऐसी असुरक्षित व्यवस्था को अनुमति देते हैं तो क्या उन्हें जवाबदेह नहीं ठहराया जाना चाहिए? और क्या अभिभावकों की भी बराबर जिम्मेदारी नहीं बनती जब वे सुरक्षित विकल्प को छोड़कर खतरा मोल लेते हैं?
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यह हादसा केवल एक त्रासदी नहीं बल्कि एक चेतावनी भी है। यदि स्कूल लाभ को बच्चों की सुरक्षा से ऊपर रखेंगे और अभिभावक भी असुरक्षित निजी साधनों पर भरोसा करते रहेंगे तो ऐसे हादसे बार-बार होंगे। दूसरी तरफ शहर की ट्रैफिक व्यवस्था में सुधार को मिशन बना चुके शहर पुलिस आयुक्त डॉ. सिंगल और डीसीपी लोहित मतानी द्वारा बसों और बाहरी वाहनों की शहर में एंट्री के अलावा स्कूल बसों के नियमों, निर्धारित लेन, गति और बस स्टॉपेज संबंधी विषयों पर सख्ती बरतने की जरूरत है।
बच्चों की जान किसी भी कीमत पर समझौते के लायक नहीं है, इसलिए प्रशासन को परिवहन नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना होगा, स्कूलों को कक्षा की चारदीवारी से बाहर भी बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी होगी और अभिभावकों को भी जिम्मेदारी से निर्णय लेना होगा।