'गोलमाल योद्धा' को दिया 12 हाथियों का बल (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Mumbai Diatrist: राज्य में मराठा और ओबीसी आरक्षण को लेकर विवाद चरम पर पहुंच गया है और ओबीसी समुदाय आक्रामक होता दिख रहा है। 2 सितंबर को जारी सरकारी आदेश के विरोध में ओबीसी समुदाय भी सड़कों पर उतर आया है। ओबीसी नेता ओबीसी महा यलगार रैली के माध्यम से सरकार को चेतावनी दे रहे हैं। सरकार से हैदराबाद गजेटियर पर सरकारी फैसले को रद्द करने की भी मांग कर रहे हैं। इसी पृष्ठभूमि में ओबीसी नेता लक्ष्मण हाके ने अब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को एक पत्र लिखा है। उन्होंने इस पत्र में कहा है कि ओबीसी आरक्षण पर चर्चा समाप्त हो गई है।
हाके ने पत्र में लिखा है कि राज्य में पिछले 7 वर्षों से पंचायत राज चुनाव नहीं हुए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने 2022 से पहले आरक्षण को स्वीकार करते हुए पंचायत राज चुनाव कराने का फैसला सुनाया है। ओबीसी को थोड़ी राहत मिली थी। कई ओबीसी कार्यकर्ता ओबीसी सीटों पर जिला परिषद सदस्य, नगरसेवक और महापौर बनने का सपना देखने लगे थे, लेकिन जरांगे नामक एक गोलमाल योद्धा मुंबई पहुंच गया। सरकार की गर्दन पर चढ़कर हैदराबाद गजेटियर के जीआर को मंजूरी हासिल करवा लिया। हाके ने आरोप लगाते हुए आगे लिखा है कि रसूखदार मराठा पहले से ही फर्जी प्रमाण पत्र हासिल करके ओबीसी आरक्षण पर अवैध रूप से कब्जा करते रहे हैं
लेकिन इसी अवैध सरकारी जीआर की वजह से जरांगे के गिरोह को 12 हाथियों जितना बल मिल गया है। हाके ने मुख्यमंत्री फडणवीस से सवाल करते हुए कहा है कि हैदराबाद राजपत्र की वजह से गोत्र-गांव- रिश्तेदारों के कुणाबीकरण और ओबीसी बनने का रास्ता साफ हो गया है। यह सरकारी आदेश ओबीसी आरक्षण का गला घोंट देगा। आपने वह कर दिखाया जो नारायण राणे समिति नहीं कर पाई, जो गायकवाड़ आयोग नहीं कर पाया। हम जानते हैं कि अदालत में इस सरकारी आदेश का कितना महत्व है। लेकिन आज ओबीसी आरक्षण समाप्त हो गया है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की भाषा में मराठा जाति शासक वर्ग रही है। मूल ओबीसी उनके मुकाबले में कैसे टिकेंगे?
हाके ने लिखा है हमने बार-बार आगाह किया था जरांगे सिर्फ एक मुखौटा है। उसके पीछे क्रूर मराठा राजनीतिक नेता, विधायक-सांसद-उद्योगपति अपने मंसूबे पूरे कर रहे हैं। स्थापित मराठा समुदाय सरपंच से लेकर मुख्यमंत्री पद तक सभी पदों पर कब्जा जमाए रखना चाहता है। जरांगे को जरूरतमंद मराठों की शिक्षा और नौकरियों से कोई लेना-देना नहीं है। ईडब्ल्यूएस के कटऑफ का अंतर ओबीसी से 15 से 20 गुना कम है। इससे जरूरतमंदों के सैकड़ों बच्चे पैरों पर खड़े हो सकते थे। लेकिन जरांगे और उसके आका ने उन सभी की जिंदगी बर्बाद कर दी।
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हम ओबीसी समाज के लोग तब तक ही चिल्लाते हैं जब तक हमारा अपना पेट नहीं भर जाता। जरांगे के सभी प्रयास राजनीतिक आरक्षण के लिए थे, लेकिन इसमें पीड़ित ओबीसी और खानाबदोश जाति समूह थे, संविधान में सामाजिक न्याय प्रदान करने का बाबासाहेब का सपना इस एक जीआर ने खत्म कर दिया है।