सुप्रीम कोर्ट (फोटो- सोशल मीडिया)
Supreme Court News: तेलंगाना की कांग्रेस सरकार को ओबीसी आरक्षण मामले में शीर्ष अदालत से तगड़ा झटका लगा है। गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने रेवंत रेड्डी सरकार की याचिका खारिज कर दी और ओबीसी रिजर्वेशन सीमा 50 फीसद तक करने के राज्य सरकार के फैसले पर हाईकोर्ट की रोक हटाने से इनकार कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट (SC) ने ओबीसी रिजर्वेशन को लेकर तेलंगाना सरकार की ओर से दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है। शीर्ष अदालत के इस फैसले से तेलंगाना की कांग्रेस सरकार, जिसका नेतृत्व रेवंत रेड्डी कर रहे हैं, को बड़ा झटका लगा है।
तेलंगाना सरकार ने बैकवर्ड क्लास (OBC) के लिए रिजर्वेशन की सीमा को बढ़ाकर 50 फीसद तक कर दिया था। विधानसभा में इस बाबत एक प्रस्ताव लाया गया था, जिसे पारित भी कर दिया गया था। कांग्रेस सरकार के इस कदम के खिलाफ कुछ पक्षों की ओर से आलोचना भी की गई। बाद में, रेवंत रेड्डी सरकार के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए ओबीसी आरक्षण की सीमा को बढ़ाने वाले सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी।
सुप्रीम कोर्ट का रुख हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगने के बाद तेलंगाना की रेवंत रेड्डी सरकार ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इस मामले पर गुरुवार 16 अक्टूबर 2025 को सुनवाई हुई। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और तेलंगाना सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तेलंगाना सरकार को एक राहत भी दी है। मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने सरकार की याचिका को ठुकराते हुए यह भी कहा कि हाईकोर्ट इस मामले पर सुनवाई जारी रख सकता है और अपने हिसाब से फैसले दे सकता है।
आरक्षण सीमा उल्लंघन का पुराना मामला यह पहली बार नहीं है जब राज्य में आरक्षण की सीमा को लेकर अदालती हस्तक्षेप हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भी तेलंगाना सरकार के एक फैसले पर सुनवाई से इनकार कर दिया था, जिसमें स्थानीय निकाय चुनावों में पिछड़े वर्ग (ओबीसी) को 42 प्रतिशत आरक्षण देने के सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी।
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याचिकाकर्ता वंगा गोपाल रेड्डी ने तब तर्क दिया था कि सरकार द्वारा 26 सितंबर को जारी आदेश में ओबीसी (42%), अनुसूचित जातियों (एससी) (15%) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) (10%) को दिए गए आरक्षण को मिलाकर स्थानीय निकायों में कुल आरक्षण 67 प्रतिशत हो गया था। याचिकाकर्ता ने कहा था कि यह आंकड़ा संविधान और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों के अनुसार तय 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करता है।