गड़चिरोली में बाघ का आतंक (सौजन्यः सोशल मीडिया)
गड़चिरोली: महाराष्ट्र के जनजातीय बहुल गड़चिरोली जिले में मनुष्य और वन्यजीवों के बीच टकराव की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। ताज़ा मामला आरमोरी तहसील के देलोडा गांव का है, जहां जंगल में महुआ फूल बीनने गई एक महिला को बाघ ने घात लगाकर मार डाला। यह दर्दनाक घटना 5 जून की सुबह लगभग 10 बजे घटी। घटना ने पूरे क्षेत्र में भय और चिंता का वातावरण पैदा कर दिया है। मृत महिला की पहचान मीरा आत्माराम कोवे (55 वर्ष), निवासी सुवर्णनगर, देलोडा के रूप में हुई है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, मीरा कोवे प्रतिदिन की तरह सुबह भोजन करने के बाद गांव से सटे जंगल के खंड क्रमांक 10 में महुआ फूल बीनने गई थीं। जब वह फूल चुन रही थीं, उसी समय झाड़ियों में छिपे बाघ ने अचानक हमला कर दिया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया।
दोपहर तक महिला के घर न लौटने पर परिजनों को चिंता हुई। उसी समय पोर्ला-वडधा मार्ग से गुजर रहे कुछ ग्रामीणों ने बाघ को देखा, जिसके बाद पूरे गांव में हड़कंप मच गया। ग्रामीणों ने जंगल में खोजबीन शुरू की और दोपहर लगभग 4 बजे मीरा कोवे का शव बरामद किया गया। वन विभाग के कर्मचारियों ने घटनास्थल पर जाकर पंचनामा किया और शव को चिकित्सकीय परीक्षण (पोस्टमार्टम) के लिए अस्पताल भेजा। इस घटना से ग्रामीणों में भय का माहौल उत्पन्न हो गया है।
मीरा कोवे पहले से ही अनेक पारिवारिक त्रासदियों का सामना कर रही थीं। दस वर्ष पहले उनके पति का निधन हो गया था। चार वर्ष पहले बड़े बेटे की बीमारी से मृत्यु हुई और दो वर्ष पूर्व छोटे अविवाहित बेटे की भी असमय मौत हो गई।
इन सब विपत्तियों के बावजूद मीरा कोवे अपनी बहू और दो नातिनों के साथ रह रही थीं और पूरे परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाए हुए थीं। उनका जीवन-यापन केवल डेढ़ एकड़ कृषि भूमि, मौसमी मजदूरी और जंगल से प्राप्त महुआ फूल जैसे वनोंपज पर निर्भर था। दुखद यह है कि जिस जंगल से उनकी रोज़ी-रोटी चलती थी, वही उनकी मृत्यु का कारण बन गया।
मार्च 2025 में गड़चिरोली जिले के चामोर्शी तहसील के गणपूर (राजस्व) गांव में भी बाघ ने एक पुरुष को मार डाला था। अब देलोडा में मीरा कोवे की मृत्यु के साथ गड़चिरोली में इस वर्ष यह दूसरी बाघ-हिंसा की घटना बन गई है।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि वे कई बार वन विभाग को बाघ की आवाजाही के बारे में सूचित कर चुके थे, लेकिन न तो जंगल के पास सुरक्षा उपाय किए गए और न ही गश्त बढ़ाई गई। अब महिलाएं, बुजुर्ग और किसान जंगल में प्रवेश करने से डरने लगे हैं, जिससे उनकी आजीविका पर भी संकट आ गया है।
वन विभाग ने कहा है कि घटनास्थल के आसपास निगरानी बढ़ाई जाएगी और पीड़ित परिवार को नियमानुसार आर्थिक सहायता दी जाएगी। हालांकि, ग्रामीणों का यह भी सवाल है कि जब विभाग को बाघ की उपस्थिति की जानकारी थी, तो कोई सावधानीपूर्वक कार्यवाही पहले क्यों नहीं की गई? बाघ को पकड़ने अथवा दूर ले जाने की कोई व्यवस्था क्यों नहीं हुई?