धराली में सिलेंडर और राशन लेकर जाते लोग (सोर्स- सोशल मीडिया)
Uttarkashi Cloudburst: उत्तरकाशी में आई भीषण आपदा ने धराली और हर्षिल गांवों को सड़क से तो काट दिया है। जिसके बाद यहां की जिंदगी और भयावह हो गई है। सड़कें बंद होने से राशन और गैस सिलेंडर की आपूर्ति रुक गई है और अब हर कदम पर जिंदगी की जंग लड़ते हुए ये लोग कंधों पर बोझ लिए अपने आंसू छिपाते हुए आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन उनके हौंसले क्रूर कुदरत से कहीं बड़े हैं।
उत्तरकाशी में आई हालिया आपदा ने धराली और हर्षिल गांवों को सड़क से अलग कर दिया है। कीचड़ और पत्थरों ने सड़कों को अपनी चपेट में ले लिया है, जिससे इन गांवों का जीवन भी थम सा गया है। इस भीषण हादसे में कई लोग लापता हो गए, जिनका अभी तक कोई सुराग नहीं मिल पाया है।
सड़कें बंद होने से राशन और गैस सिलेंडर की आपूर्ति रुक गई है। लोग कंधों पर भारी बोरियां और सिलेंडर लिए अपने घरों की ओर बढ़ रहे हैं। इस संघर्ष पथ पर एक तरफ उनकी पीड़ा तो दूसरी तरफ जुनून साफ दिखाई दे रहा है। लेकिन वह हार मानने को तैयार नहीं हैं।
पिछले दस दिनों से नमक, तेल, मसाले, चीनी और यहां तक कि चाय की कमी से जूझ रहे इन लोगों को सब्जियों की दुकानें बंद होने का भी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। ज़्यादातर लोग सरकारी राहत पर निर्भर हैं, लेकिन सड़कें न खुलने से यह सहारा भी कमज़ोर होता जा रहा है। सरकार और प्रशासन का ध्यान धराली रेस्क्यू पर होने के कारण इन गांवों को पूरी मदद नहीं मिल पा रही है।
5 अगस्त की आपदा ने धराली-हर्षिल को सबसे गहरा ज़ख्म दिया, लेकिन आसपास के झाला, जसपुर, पुराली, बागोरी, मुखवा जैसे इलाके भी इससे अछूते नहीं हैं। डबरानी के पास गंगोत्री हाईवे टूटने से हर्षिल घाटी के आठ गांवों की लगभग 12 हज़ार आबादी पिछले दस दिनों से सड़क संपर्क से वंचित है।
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अब झाला के सरकारी गोदाम में सिर्फ 150 क्विंटल चावल और इतना ही गेहूं बचा है, जो राहत शिविरों और बचाव दलों के लिए आपूर्ति का एकमात्र जरिया है। अगर जल्द ही आपूर्ति शुरू नहीं हुई, तो राशन का संकट और भी गंभीर हो सकता है। राजमार्ग पुनः खुलने के बाद अगले छह महीने तक राशन वितरित करने की योजना है, लेकिन तब तक इन लोगों का जीवन अनिश्चितता और पीड़ा के बीच झूल रहा है।