अदालत ने रोना विल्सन और सुधीर धवले को जमानत दी। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
मुंबई: 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सभी को ज्ञात है। लेकिन इस परिषद में मामला दर्ज कर गिरफ्तार किए गए 16 लोग अब तक जेल में बिना सुनवाई के पड़े रहे हैं। कुछ की तो मृत्यु हो गई है। अब इस मामले से जुड़ी बड़ी खबर सामने आ रही है। बंबई उच्च न्यायालय ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में गिरफ्तार शोधकर्ता रोना विल्सन और कार्यकर्ता सुधीर धवले को बुधवार को 6 साल बाद जमानत दे दी। बता दें कि 2018 से आरोपी जेल में हैं तथा मुकदमे की सुनवाई अभी शुरू नहीं हुई है।
न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और न्यायमूर्ति कमल खाता की खंडपीठ ने कहा कि दोनों ने विचाराधीन कैदियों के रूप में जेल में छह साल से अधिक समय बिताया है। अदालत ने कहा, “वे 2018 से जेल में हैं। मामले में आरोप भी अभी तय नहीं हुए हैं। अभियोजन पक्ष ने 300 से अधिक गवाहों का हवाला दिया है, और इस प्रकार निकट भविष्य में मुकदमे के समाप्त होने की कोई संभावना नहीं है।” आरोप तय होने के बाद मुकदमे की सुनवाई शुरू होती है।
अभियोजन एजेंसी राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण यानी एनआईए ने उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थगन की मांग नहीं की। बचाव पक्ष के वकील मिहिर देसाई और सुदीप पासबोला ने दलील दी कि मामले में गिरफ्तारी के बाद से दोनों आरोपी जेल में बंद हैं। राहत प्रदान करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि वह इस स्तर पर मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं कर रहा है। विल्सन और धवले को एक-एक लाख रुपये की जमानत प्रस्तुत करने और मुकदमे की सुनवाई के लिए विशेष एनआईए अदालत के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि वे अपना पासपोर्ट जमा करें तथा मुकदमा समाप्त होने तक शहर नहीं छोड़ें। यह मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने से संबंधित है, जिसके कारण अगले दिन पुणे जिले के कोरेगांव-भीमा में हिंसा भड़क गई थी। पुणे पुलिस ने दावा किया था कि इस सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था। बाद में एनआईए ने जांच अपने हाथ में ले ली थी। इस मामले में गिरफ्तार किए गए 16 लोगों में से कई अब जमानत पर बाहर हैं।
रोना विल्सन को जून 2018 में दिल्ली स्थित उसके घर से गिरफ्तार किया गया था। जांच एजेंसियों ने उन्हें शहरी माओवादियों के शीर्ष नेताओं में से एक बताया है। सुधीर धवले इस मामले में सबसे पहले गिरफ्तार किए गए लोगों में से एक थे, उन पर प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का सक्रिय सदस्य होने का आरोप है। धवले और विल्सन के अलावा इस मामले में 14 अन्य कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था।
इनमें से आठ – वरवर राव, सुधा भारद्वाज, आनंद तेलतुम्बडे, वर्नोन गोंजाल्विस, अरुण फरेरा, शोमा सेन, गौतम नवलखा और महेश राउत को अब तक जमानत मिल चुकी है। महेश राउत जेल में ही हैं, क्योंकि उनकी जमानत के खिलाफ एनआईए द्वारा दायर अपील उच्चतम न्यायालय में लंबित है, लेकिन मंगलवार को विशेष एनआईए अदालत ने उन्हें एलएलबी परीक्षा में बैठने के लिए 18 दिनों की अंतरिम जमानत दे दी। मामले के एक आरोपी स्टेन स्वामी की 2021 में जेल में रहते हुए मृत्यु हो गई।
मालूम हो कि एल्गार परिषद मामला पुणे में 31 दिसंबर 2017 को आयोजित गोष्ठी में कथित भड़काऊ भाषण से जुड़ा है। पुलिस का दावा है कि इस भाषण की वजह से अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई और इस संगोष्ठी का आयोजन करने वालों का संबंध कथित माओवादियों से था। एनआईए ने 16 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है, जिनमें मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और शिक्षाविद शामिल हैं। इन सभी पर प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) संगठन का हिस्सा होने का आरोप है। पुणे पुलिस ने यह भी दावा किया था कि आरोपियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘राजीव गांधी की तरह हत्या’ करने की योजना बनाई।
(एजेंसी इनपुट के साथ)