
पार्टियों को सता रहा मत विभाजन का खतरा (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Bhandara Municipal Council Election: भंडारा नगर परिषद चुनाव में मित्र दलों के बीच आई कटुता और टिकट वितरण में पैदा हुई अव्यवस्था ने बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है। लोकसभा और विधानसभा में साथ लड़ने वाले कई सहयोगी दल अब स्थानीय चुनाव में एक-दूसरे से अलग होकर मैदान में उतर आए हैं। इतना ही नहीं, वे एक-दूसरे को “निपटाने” जैसी भाषा का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके चलते स्थानीय राजनीतिक समीकरण बिगड़ गए हैं और मतों के विभाजन का खतरा सभी दलों को सताने लगा है।
जिले की चार नगर परिषदों के चुनाव ने स्थानीय राजनीति को पूरी तरह गर्मा दिया है। विधायकों सहित स्थानीय नेताओं के बीच वर्चस्व की जंग तेज हो गई है। टिकट बंटवारा पूरा होने के बाद चुनावी तस्वीर भले ही कुछ हद तक स्पष्ट हो गई हो, लेकिन अब हर दल के सामने सबसे बड़ी चुनौती विपक्ष नहीं, बल्कि उनके ही मित्र दल और बागियों की बगावत बन गई है। शहर में महिला मतदाताओं की संख्या अधिक होने के कारण सभी दल महिलाओं को साधने में जुट गए हैं।
सत्तारूढ़ दलों ने ‘लाड़ली बहन योजना’ को हथियार बनाकर महिलाओं का समर्थन हासिल करने की रणनीति अपनाई है। दूसरी ओर कांग्रेस इस योजना को भ्रामक बताते हुए महिलाओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रही है। यहां भाजपा से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजित पवार गुट), शिंदेसेना और कांग्रेस चुनाव लड़ रहे हैं। कई वार्डों में बहुजन समाज पार्टी और वंचित बहुजन आघाड़ी ने भी उम्मीदवार उतारे हैं। ऐसे में प्रत्येक वार्ड में अलग-अलग समीकरण बन रहे हैं और बहुकोणीय मुकाबला सामने आ रहा है।
हर दल में कई गुट सक्रिय हैं। हर गुट अपने समर्थक को टिकट दिलाना चाहता था, लेकिन वार्ड सीमित होने के कारण असंतोष बढ़ गया। गुटबाजी के चलते कई अधिकृत उम्मीदवारों को नुकसान होने की संभावना पैदा हो गई है। कुछ नाराज़ नेताओं ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में कूदने का फैसला किया है, जबकि कुछ नेता पर्दे के पीछे रहकर अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ काम करने की तैयारी में दिखाई दे रहे हैं।
ये भी पढ़े: मुंबई में BJP को हराने के लिए बड़ा दांव चलने जा रहे शरद पवार, बनाया सुपरप्लान
नगर पालिका में प्रशासनिक व्यवस्था लागू रहने के कारण कई पूर्व नगरसेवकों का जनता से संपर्क कमजोर पड़ा है। अब चुनाव में इसका खामियाज़ा सामने आ रहा है। कुछ पूर्व जनप्रतिनिधियों की समस्या आरक्षण बदलाव से और बढ़ गई है। वहीं दूसरी ओर नए चेहरे भी दमदार दावेदारी के साथ मैदान में उतर रहे हैं, जिससे पुराने नेताओं के सामने चुनौती और अधिक कठिन हो गई है।






