प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो: सोशल मीडिया
Indian Pin Code History: 70 के दशक में चिट्ठियां लोगों के जीवन का अहम हिस्सा थीं। लेकिन उन्हें सही पते तक पहुंचाना कई बार किस्मत का खेल बन जाता था। वजह? देश में कई कस्बों और गांवों के नाम एक जैसे थे। जरा सोचिए एक ही नाम वाले दो शहर, और एक चिट्ठी गलती से गलत जगह पहुँच गई। इस उलझन से छुटकारा पाने के लिए एक सटीक, मानकीकृत सिस्टम की जरूरत थीऔर वहीं से पिन कोड की कहानी शुरू हुई।
इस क्रांतिकारी बदलाव के सूत्रधार थे श्रीराम भीकाजी वेलंकर, उस समय के केंद्रीय संचार मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव और डाक एवं तार बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य। ‘फादर ऑफ द पोस्टल इंडेक्स कोड सिस्टम’ कहे जाने वाले वेलंकर ने एक सरल लेकिन कारगर तरीका सुझाया और पूरे देश को अलग-अलग जोनों में बांट दिया गया। पिन कोड के पहले दो अंक जोन बताते हैं, तीसरा अंक उप-क्षेत्र की पहचान करता है और अंतिम तीन अंक किसी खास डाकघर को। बस छह अंकों का यह कोड डाक वितरण की दुनिया में क्रांति ले आया।
भले ही आज चिट्ठियों की जगह ईमेल और व्हाट्सऐप ने ले ली हो, लेकिन पिन कोड की अहमियत खत्म नहीं हुई बल्कि और बढ़ गई है। अमेज़न से लेकर फ्लिपकार्ट तक हर ऑनलाइन ऑर्डर की यात्रा पिन कोड से ही शुरू होती है। कूरियर सेवाओं, सरकारी योजनाओं, बैंकिंग लेन-देन हर जगह यह छोटा सा नंबर सही पते और सही समय की गारंटी है।
अगर 70 के दशक में पिन कोड न होता, तो एक सैनिक के नाम भेजी चिट्ठी किसी और के हाथ लग सकती थी, शादी का निमंत्रण हफ्तों देर से पहुंच सकता था, या सरकारी नोटिस गलत घर में जा सकता था। लेकिन पिन कोड ने इस असमंजस का अंत कर दिया।
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आज 53 साल बाद भी जब आपके दरवाजे पर डिलीवरी बॉय पैकेज थमाता है, उसके सफर की शुरुआत उसी छह अंकों वाले कोड से होती है जो 15 अगस्त 1972 को जन्मा था। पिन कोड सिर्फ एक नंबर नहीं यह विश्वास है, कि आपका सामान या संदेश सही जगह, सही समय पर पहुंचेगा। इसलिए, जब भी हम 15 अगस्त को तिरंगे के नीचे खड़े होकर आजादी का जश्न मनाएं, उस छोटे से तोहफे को भी याद करें, जिसने देश के हर पते को एक अनोखी पहचान दी।