तिरंगे की सबसे पहले रूपरेखा रखने वाले पिंगली वेंकैया, फोटो: सोशल मीडिया
National Flag History: तिरंगे को आकार देने वाले उस महान इंसान का नाम आज भी आम लोगों में कम ही जाना जाता है, जबकि उन्होंने इसे तैयार करने के लिए सालों तक अथक परिश्रम किया। ये कहानी है आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में जन्मे स्वतंत्रता सेनानी की।
साल 1916 में एक ऐसे ध्वज की कल्पना की गई जो देश के हर व्यक्ति को एक सूत्र में बांध सके। इसके लिए दुनियाभर के देशों के झंडों का गहन अध्ययन किया जाने लगा, जो पूरे पांच साल तक चला। इस खोज में कई नाम शामिल हुए। लेकिन सबसे पहले इसकी कल्पना की मछलीपट्टनम में जन्मे स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया ने।
पिंगली वेंकैया की इस पहल में एस.बी. बोमान जी और उमर सोमानी भी शामिल हुए। तीनों ने मिलकर “नेशनल फ्लैग मिशन” की स्थापना की। इसका उद्देश्य भारत के लिए एक ऐसा झंडा तैयार करना था जो सांस्कृतिक विविधता के बीच एकता का प्रतीक बन सके। वेंकैया महात्मा गांधी से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने अपने प्रस्तावित झंडे पर गांधी जी से राय ली। गांधी जी ने उन्हें झंडे के केंद्र में अशोक चक्र शामिल करने का सुझाव दिया जो कि अखंड भारत और धर्मचक्र का प्रतिनिधित्व करता।
साल 1921 में वेंकैया ने राष्ट्रीय ध्वज का पहला प्रारूप तैयार किया। इसमें केवल लाल और हरे रंग की दो पट्टियां थीं और बीच में चरखा बना था। लाल रंग हिंदू समुदाय, हरा रंग मुस्लिम समुदाय का प्रतीक माना गया। गांधी जी के सुझाव के बाद इसमें सफेद रंग भी जोड़ा गया, जो शांति और अन्य सभी धर्मों का प्रतिनिधित्व करता था। 1931 तक कांग्रेस अधिवेशन में इसी रूप के झंडे का उपयोग होता रहा। हालांकि, रंगों को लेकर बहसें जारी रहीं। अंततः 1931 में कांग्रेस ने औपचारिक रूप से केसरिया, सफेद और हरे रंग के तिरंगे को अपनाया, जिसमें बीच में चरखा बना हुआ था।
जब साल 1947 में स्वतंत्रता निकट आई, तो यह प्रश्न उठा कि स्वतंत्र भारत का झंडा कैसा होगा। डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई। समिति ने 22 जुलाई 1947 को जो तिरंगा अपनाया, उसमें चरखे की जगह अशोक चक्र को स्थान दिया गया। केसरिया रंग त्याग और साहस, सफेद रंग शांति, और हरा रंग समृद्धि व प्रकृति का प्रतीक बना। यह स्वरूप आज तक अपरिवर्तित है।
वेंकैया सिर्फ एक झंडा निर्माता ही नहीं, बल्कि आजादी की लड़ाई के सक्रिय सहभागी भी रहे। मछलीपट्टनम के हिंदू हाई स्कूल में शिक्षा पूरी करने के बाद वे कोलंबो गए। यहां 19 साल की उम्र में उन्होंने अफ्रीका के बोर युद्ध में भाग लेने के लिए नाम दर्ज कराया। दक्षिण अफ्रीका में उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई, जो जीवनभर का संबंध बन गया। वेंकैया ने कृषि रिसर्च में भी खास योगदान दिया। उन्होंने कपास की एक नई किस्म “कंबोडिया कॉटन” की खोज की, जिसके कारण उन्हें “पट्टी वेंकैया” कहा जाने लगा।
राष्ट्रीय ध्वज के डिजाइनर होने के बावजूद वेंकैया ने जीवन के अंतिम कुछ साल गरीबी में बिताए। 1963 में उनका निधन हुआ तब उनके परिवार की स्थिति इतनी खराब थी कि आपसी संपर्क भी टूट चुका था। उनके योगदान को याद करते हुए भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया, लेकिन उनके जीवनकाल में उन्हें वह पहचान और सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे।
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पिंगली वेंकैया द्वारा रचा गया तिरंगा केवल कपड़े का टुकड़ा नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों की भावनाओं का प्रतीक है। इसमें शामिल केसरिया रंग देश के साहस और त्याग को दर्शाता है, सफेद रंग शांति और सत्य का, जबकि हरा रंग जीवन और समृद्धि का प्रतीक है। बीच में स्थित अशोक चक्र हमें निरंतर प्रगति और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। आज जब भी हम राष्ट्रीय ध्वज को फहराते हैं, हमें याद रखना चाहिए कि इसके पीछे एक ऐसे व्यक्ति की मेहनत, सोच और त्याग छिपा है, जिसने अपना जीवन देश को समर्पित कर दिया।