सुप्रीम कोर्ट (फोटो-सोशल मीडिया)
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट अपने न्यायिक फैसलों, आदेशों और निर्देशों को लेकर जानी जाती है, लेकिन चीफ जस्टिस के एक प्रशासनिक फैसले ने टैक्सपेयरों को 2.68 करोड़ बर्बाद कर दिया। एक साल पहले सुप्रीम के ऐतिहासिक गलियारे को तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने शीशे की दीवार बनाकर बंद करने का आदेश दिया था।
उनका यह फैसले के बाद बनाई गई दीवार एक साल भी नहीं चल पाई। चीफ जस्टिस बीआर गवई के आदेश के बाद गलियारे में बनी दीवार को तोड़ दिया गया। इससे सुप्रीम कोर्ट अपने मूल स्वारूप में लौट आया, लेकिन दीवार बनाने और तोड़ने में 2.68 करोड़ रूपये खर्ज हो गए।
पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में कई अहम बदलाव किए थे। इसमें एक सुप्रीम कोर्ट के गलियारे को शीशे की दीवार बनाकर बंद करना भी था। इसके पीछे उनका तर्क था कि इससे सेंट्रलाइज्ड एयर कंडीशनिंग में मदद मिलेगी और परिसर को ज्यादा आरामदायक बनाया जा सकेगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के बार एसोसिएशन ने इसका विरोध किया था।
सुप्रीम कोर्ट के प्रशासनिक फैसले पर सवाल
वकीलों की संस्था सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) के विरोध के बावजूद भी शीशे की दीवारें बनाई गई। इससे सुप्रीम कोर्ट की बिल्डिंग काफी मॉडर्न नजर आने लगी थी। यह न केवल ढांचागत बल्कि यह सिंबोलिक बदलाव भी था। अब सीजेआई गवई के आदेश पर दीवार को हटा दिया गया। दो जजों के आदेशों के विरोधाभास के चलते जनता का पैसा बर्बाद हो गया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की प्रशासनिक स्थिरता पर सवाल खड़े होते हैं।
चीफ जस्टिस गवई ने बदला चंद्रचूड़ का फैसला
शीशे की दीवार बनने के बाद बार एसोसिएशन ने कहा कि गलियारों की चौड़ाई काफी कम हो गई है, जिससे एक कोर्ट से दूसरे कोर्ट तक पहुंचने मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इससे गलियारे में भीड़ की स्थिति पैदा हो जाती है। जो लोग कोर्ट में रोजाना के काम में अहम भूमिका निभाते हैं, उनकी सलाह लिए बिना फैसला थोप दिया गया। दीवार हटाने को लेकर बार एसोसिएशन के वकीलों ने चंद्रचूड़ का कार्यकाल समाप्त होने के बाद नए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना अर्जी डाली, लेकिन संजीव खन्ना ने कोई फैसला नहीं लिया। लेकिन गवई ने इस पर फैसला लिया और दीवार हटाने का आदेश दे दिया। अब सुप्रीम कोर्ट से अधुनिकता की प्रतीक शीशे की दीवार तोड़ दी गई।
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कितना खर्चा आया? आरटीआई में खुलासा
आजतक की एक रिपोर्ट के मुताबिक RTI से पता चला कि सुप्रीम कोर्ट परिसर में इन शीशों को लगाने में कुल ₹2,59,79,230 (करीब 2.6 करोड़ रुपये) खर्च हुए थे। इसके बाद इसे हटाने में ₹8,63,700 रुपये का खर्च आया। इस तरह कुल ₹2.68 करोड़ रुपये सिर्फ एक साल के अंदर खर्च हो गए। सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने इस फैसले को ‘फुल कोर्ट’ का सामूहिक निर्णय बताया है। CJI गवई ने सुप्रीम कोर्ट के लोगो को भी उसके पुराने स्वरूप में बहाल कर दिया, जिसमें भारत का राजचिह्न केंद्र में होता है। यह लोगो चंद्रचूड़ के कार्यकाल में बदला गया था।