कांग्रेस नेता राहुल गांधी (फोटो- सोशल मीडिया)
Rahul Gandhi Vote Theft Allegations: कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा ‘वोट चोरी’ को लेकर भाजपा और चुनाव आयोग पर लगाए गए आरोपों ने अब खुद उनकी पार्टी के भीतर एक नई बहस छेड़ दी है। जहां एक तरफ राहुल इस मुद्दे पर बेहद आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं, वहीं पार्टी के कई वरिष्ठ नेता इस रणनीति को लेकर असहज महसूस कर रहे हैं। उन्हें डर है कि यह अभियान कहीं भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद पर ही सवाल खड़े न कर दे, जिसका राजनीतिक रूप से उल्टा असर हो सकता है।
गुरुवार को दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कर्नाटक और महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए मतदाता सूची में धांधली के गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया कि सेंट्रलाइज्ड सॉफ्टवेयर का उपयोग करके बड़े पैमाने पर वोट हटाए गए और जोड़े गए। राहुल ने सीधे तौर पर मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार पर “लोकतंत्र को नष्ट करने वालों को बचाने” का आरोप लगाया। हालांकि, कांग्रेस के कई नेता मानते हैं कि सबूतों के बिना ऐसे आरोप पार्टी को कमजोर कर सकते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस के अंदर राहुल की इस आक्रामक रणनीति को लेकर दो तरह की राय है। पार्टी के एक खेमे का मानना है कि राहुल सही मुद्दा उठा रहे हैं और इसे जनता के बीच ले जाना चाहिए। वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पार्टी का काम धांधली को उजागर करना है, सबूत देना चुनाव आयोग का काम है। वहीं, दूसरा खेमा इस अभियान से चिंतित है। एक पूर्व कार्यसमिति सदस्य के मुताबिक, “राहुल मूल रूप से कह रहे हैं कि भारतीय लोकतंत्र धांधली पर टिका है। यह एक बहुत गंभीर संदेश है।”
कई नेताओं को इस अभियान का अंतिम लक्ष्य समझ नहीं आ रहा है। उनका मानना है कि ‘वोट चोरी’ जैसे मुद्दे पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करने से कांग्रेस बेरोजगारी, सामाजिक न्याय और भ्रष्टाचार जैसे ठोस मुद्दों से भटक सकती है। कुछ पूर्व नेताओं ने तो यहां तक कह दिया कि यह अभियान संगठन की जमीनी कमजोरी को छिपाने की एक कोशिश है। उनका सवाल है कि अगर कर्नाटक की महादेवपुरा सीट पर एक लाख वोटों की गड़बड़ी हुई, तो पार्टी के बूथ स्तर के एजेंट उस समय क्या कर रहे थे? यह सवाल सीधे तौर पर पार्टी के संगठनात्मक ढांचे पर उंगली उठाता है कि यदि इतनी बड़ी गड़बड़ी हुई है तो पार्टी का जमीनी स्तर का संगठन क्या कर रहा है।
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फिलहाल, राहुल गांधी ‘वोट चोरी’ के मुद्दे को कल्याणकारी योजनाओं से जोड़कर आम जनता के लिए प्रासंगिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन पार्टी के भीतर ही यह संशय बना हुआ है कि क्या यह रणनीति चुनावी नतीजों तक टिक पाएगी, या फिर लोकतंत्र पर सवाल उठाकर पार्टी के लिए ही मुश्किल खड़ी कर देगी।