मुंगेर विधानसभा सीट प्रोफाइल (फोटो-सोर्स,सोशल मीडिया)
Munger Vidhansabha Seat Profile: बिहार के पूर्वी हिस्से में गंगा नदी के किनारे बसा मुंगेर विधानसभा क्षेत्र एक बार फिर चुनावी चर्चा का केंद्र बन गया है। राजनीतिक दृष्टिकोण से यह सामान्य श्रेणी की सीट है, जिसकी स्थापना 1957 में हुई थी। समाजवादी विचारधारा का प्रभाव यहां लंबे समय तक रहा, लेकिन कोई भी दल इसे अपना स्थायी गढ़ नहीं बना सका।
अब तक हुए 17 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस, राजद और जदयू ने तीन-तीन बार जीत दर्ज की है। जनता दल ने दो बार, जबकि संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी और जनता पार्टी (सेक्युलर) ने एक-एक बार सफलता पाई है। 2020 में भाजपा के प्रणव कुमार यादव ने राजद के अविनाश कुमार विद्यार्थी को मामूली अंतर से हराकर सीट पर कब्जा जमाया था। इससे पहले 1969 में जनसंघ के रवीश चंद्र वर्मा ने यहां जीत दर्ज की थी।
पिछले चुनाव में भाजपा को 45.74 फीसदी और राजद को 44.99 फीसदी वोट मिले थे। यह अंतर बेहद कम था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि मुकाबला बेहद करीबी रहा। 2025 में राजद पिछली हार का बदला लेने की रणनीति में जुटी है, जबकि भाजपा अपने विजयी रथ को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
मुंगेर का इतिहास चौथी शताब्दी ईस्वी से जुड़ा है, जब यह गुप्त काल में सत्ता का केंद्र था। महाभारत में इसे ‘मोदगिरि’ के नाम से वर्णित किया गया है। सभा पर्व में भीम द्वारा अंगराज कर्ण को पराजित करने का उल्लेख इसी स्थान से जुड़ा है। यह क्षेत्र बुद्ध के अनुयायी मौदगल्य से भी जुड़ा है, जिन्होंने यहां के व्यापारियों को बौद्ध धर्म में परिवर्तित किया।
शाहजहां के पुत्र शाह शुजा ने मुंगेर को अपनी सैन्य तैयारियों का केंद्र बनाया। बाद में 1762 में मीर कासिम ने इसे राजधानी घोषित किया और यहां शस्त्रागार की स्थापना की। मुंगेर तब आग्नेयास्त्र निर्माण का प्रमुख केंद्र बन गया। मीर कासिम के प्रशासनिक और न्यायिक सुधारों ने जनता के बीच उन्हें लोकप्रिय बना दिया।
मुंगेर आज भी धार्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। यहां हिंदू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध और अन्य धर्मों के लोग एक-दूसरे के त्योहारों में भाग लेते हैं। अशोकधाम मंदिर, प्राचीन मस्जिदें और चर्च इस क्षेत्र की विविध धार्मिक पहचान को दर्शाते हैं। गंगा नदी की निकटता इसे धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण बनाती है।
हाल के वर्षों में मुंगेर की जीवनशैली में बदलाव देखा गया है। शहरी क्षेत्रों में युवाओं का पहनावा और सोच आधुनिकता की ओर बढ़ रही है। स्थानीय हस्तशिल्प वस्तुओं का उत्पादन और बिक्री इस क्षेत्र की सांस्कृतिक परंपरा को जीवित रखे हुए है। हिंदी और स्थानीय बोली यहां की प्रमुख भाषाएं हैं।
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मुंगेर विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव भाजपा और राजद के बीच फिर से सीधा मुकाबला बनता दिख रहा है। भाजपा अपने संगठनात्मक ताकत और पिछले प्रदर्शन के सहारे मैदान में है, जबकि राजद पिछली हार को पलटने के लिए जातीय समीकरण और स्थानीय मुद्दों को केंद्र में रख रही है।
मुंगेर की राजनीतिक दिशा तय करने वाले मतदाता इस बार किसे मौका देंगे, यह देखना दिलचस्प होगा। यह चुनाव न केवल दलों की ताकत की परीक्षा है, बल्कि मुंगेर की ऐतिहासिक विरासत, सामाजिक समरसता और विकास की अपेक्षाओं का भी प्रतिबिंब होगा।