किरण राव का बयान वायरल
Kiran Rao Statement: भारतीय सिनेमा को 112 साल से अधिक का लंबा और समृद्ध इतिहास रहा है। बावजूद इसके, आज तक भारत की कोई फीचर फिल्म ऑस्कर का पुरस्कार नहीं जीत पाई है। इस साल ‘होमबाउंड’ को भारत की आधिकारिक एंट्री के रूप में भेजा गया है, जिससे उम्मीदें तो बंधी हैं, लेकिन इस बीच फिल्ममेकर किरण राव ने इस विषय पर अपना स्पष्ट नजरिया सामने रखा है।
किरण राव ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि हॉलीवुड या पश्चिमी देशों में भारतीय फिल्मों के प्रति कोई जानबूझकर पक्षपात किया जाता है, लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि वहां की ऑडियंस और वोटर्स का नजरिया हमसे अलग होता है। उन्होंने कहा कि ऑस्कर एकेडमी किसी फिल्म को अपने ढांचे, सोच और अनुभव के आधार पर पुरस्कृत करती है। कई बार भारतीय फिल्मों में वे तत्व नहीं होते जो उनके वोटर्स को आकर्षित करें। हमारी कहानियां और उनका सिनेमाई स्वाद अलग-अलग हैं।
किरण राव का मानना है कि भारत में विविधता से भरा सिनेमा बनता है कि बड़े बजट की कमर्शियल फिल्मों से लेकर संवेदनशील सामाजिक कहानियों तक। लेकिन अंतरराष्ट्रीय पहचान पाने के लिए केवल अच्छी फिल्म बनाना ही काफी नहीं होता। उन्होंने कहा कि ऑस्कर की दुनिया सिर्फ फिल्म की क्वालिटी पर नहीं टिकती, बल्कि उसके पीछे एक पूरा इकोसिस्टम काम करता है, जैसे प्रमोशन, डिस्ट्रीब्यूशन और सही प्लेटफॉर्म तक पहुंच।
किरण राव इन दिनों अपनी फिल्म ‘लापता लेडीज’ की सफलता का जश्न मना रही हैं, जिसने फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में 13 पुरस्कार जीते। इस फिल्म ने न सिर्फ आलोचकों की सराहना पाई, बल्कि दर्शकों के दिल में भी जगह बनाई। इसी संदर्भ में उन्होंने कहा कि भारतीय फिल्में अक्सर अपने दर्शकों और समाज के प्रति ईमानदार होती हैं, लेकिन ऑस्कर जैसे प्लेटफॉर्म के लिए जरूरी मार्केटिंग रणनीति और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्किंग में हम पीछे रह जाते हैं।
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किरण राव ने आगे कहा कि भारत में फिल्में ऑस्कर जीतने के लिए नहीं, बल्कि दर्शकों के दिल जीतने के लिए बनाई जाती हैं। हमारे सिनेमा का मकसद समाज और मानवीय भावनाओं को दिखाना है। बातचीत के अंत में किरण राव ने कहा कि जब कोई विदेशी दर्शक भारतीय फिल्म से जुड़ाव महसूस करता है, तभी उसकी असली जीत होती है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि उनकी फिल्म को जापान की एक अंतरराष्ट्रीय अकादमी ने सम्मानित किया, जो उनके लिए गर्व और आश्चर्य दोनों का विषय रहा।