भोरे विधानसभा सीट (सोर्स- डिजाइन)
Bhore Assembly Constituency: बिहार के गोपालगंज जिले की भोरे विधानसभा सीट एक बार फिर सियासी चर्चा के केंद्र में है। यह सीट न केवल भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से भी बेहद संवेदनशील मानी जाती है। अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित यह सीट गोपालगंज लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और उत्तर प्रदेश की सीमा से सटी होने के कारण इसकी राजनीतिक दिशा पर बाहरी प्रभाव भी देखा जाता है।
भोरे विधानसभा क्षेत्र गंडक नदी की घाटी में स्थित है और उपजाऊ गंगा के मैदानों का हिस्सा है। यहां की मिट्टी कृषि के लिए अनुकूल है, जिससे धान, गेहूं, मक्का और गन्ना जैसी फसलें प्रमुखता से उगाई जाती हैं। हालांकि, औद्योगिक विकास की रफ्तार धीमी है और कुछ चावल मिलों, ईंट भट्टों और कृषि आधारित लघु उद्योगों के अलावा यहां रोजगार के अवसर सीमित हैं।
1957 में गठित इस विधानसभा क्षेत्र में भोरे, कटेया और विजयीपुर प्रखंड शामिल हैं। स्थानीय मान्यता के अनुसार, इसका नाम महाभारत काल के योद्धा भूरीश्रवा से जुड़ा है, जो कौरवों की ओर से युद्ध में लड़े थे। यह क्षेत्र ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी समृद्ध रहा है, जो इसे अन्य सीटों से अलग पहचान देता है।
भोरे विधानसभा क्षेत्र में अब तक 16 बार चुनाव हो चुके हैं। कांग्रेस ने यहां आठ बार जीत दर्ज की है, लेकिन समय के साथ सत्ता का संतुलन बदलता रहा है। जनता दल, भाजपा और राजद ने दो-दो बार जीत हासिल की, जबकि जनता पार्टी और जदयू को एक-एक बार सफलता मिली है। 2020 में जदयू ने यहां जीत दर्ज की, लेकिन जीत का अंतर महज 500 वोटों से भी कम था, जो मुकाबले की तीव्रता को दर्शाता है।
चूंकि यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, इसलिए एससी मतदाता यहां निर्णायक भूमिका में हैं। इसके अलावा, यादव और मुस्लिम मतदाता भी बड़ी संख्या में मौजूद हैं। यादव मतदाता लगभग 12.5 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाता करीब 11.1 प्रतिशत हैं। इन समुदायों का झुकाव राजद की ओर देखा जाता है, जबकि जदयू भी मुस्लिम मतदाताओं को साधने की कोशिश करता रहा है।
गोपालगंज लालू प्रसाद यादव का गृह जिला है, जिससे राजद का प्रभाव यहां स्वाभाविक रूप से मजबूत माना जाता है। हालांकि, जदयू ने 2020 में यहां जीत दर्ज कर यह साबित किया कि संगठनात्मक ताकत और रणनीति से राजद को चुनौती दी जा सकती है। भाजपा का प्रभाव सीमांत इलाकों तक सीमित है, लेकिन गठबंधन के तहत वह समीकरणों को प्रभावित कर सकती है।
2024 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, भोरे में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों के लगभग बराबर है। यह संकेत देता है कि महिला वोट बैंक की भूमिका आगामी चुनाव में अहम हो सकती है। क्षेत्र में विकास, सड़क, सिंचाई, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे चर्चा में हैं, लेकिन चुनावी समय में जातीय और सामाजिक समीकरण अक्सर इन मुद्दों पर भारी पड़ते हैं।
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भोरे विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव एक बार फिर जदयू और राजद के बीच सीधा मुकाबला बनता दिख रहा है। जदयू जहां अपनी सत्ता को बरकरार रखने की कोशिश में है, वहीं राजद इस सीट को फिर से अपने पाले में लाने के लिए पूरी ताकत झोंक रहा है। मतदाताओं का रुझान किस ओर जाएगा, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे, लेकिन इतना तय है कि भोरे की लड़ाई इस बार भी बेहद दिलचस्प और निर्णायक होगी।