प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: हिज्ब-उल-मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन के जेल में बंद बेटों ने अपने परिवार के सदस्यों से फोन पर बात करने की सुविधा बहाल करने के लिए शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने पाया कि राज्य सरकार और जेल अधिकारियों की ओर से कोई भी पेश नहीं हुआ। इसके बाद पीठ ने याचिका की अगली सुनवाई के लिए 22 मई की तारीख तय की।
सलाहुद्दीन के बेटों सैयद अहमद शकील और सैयद शाहिद यूसुफ ने दिल्ली जेल नियमावली के नियम 631 को चुनौती दी है। इस नियम के मुताबिक राज्य के खिलाफ अपराध, आतंकवादी गतिविधियों और अन्य जघन्य अपराधों के आरोपी टेलीफोन और इलेक्ट्रॉनिक संचार सुविधाओं का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं होती है। हालांकि, यह जेल अधीक्षक को उप महानिरीक्षक की पूर्व स्वीकृति के आधार पर व्यक्तिगत मामलों में उचित निर्णय लेने का अधिकार देता है।
सैयद अहमद शकील और सैयद शाहिद यूसुफ के वकील ने कहा कि आतंकी मामलों में मुकदमे का सामना कर रहे कई अन्य आरोपियों ने भी उच्च न्यायालय का रुख किया है और जेल अधिकारियों की ओर से कथित तौर पर बंद की गई उनकी फोन सुविधाओं को बहाल करने की मांग की है।
अदालत ने जनवरी में कहा था कि आतंकवाद, महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (MCOCA) और अन्य जघन्य आरोपों का सामना कर रहे कैदियों को नियमित टेलीफोन और इलेक्ट्रॉनिक संचार से वंचित करना पहली नजर में मनमाना नहीं है।
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) ने हवाला लेनदेन से जुड़े आतंकी वित्तपोषण मामले में दोनों को गिरफ्तार किया था। फिलहाल वे दिल्ली की अलग-अलग जेलों में बंद हैं। शकील को एनआईए ने 2011 में दर्ज आतंकी वित्तपोषण मामले में 30 अगस्त 2018 को श्रीनगर स्थित उसके घर से गिरफ्तार किया था। शाहिद ने कथित तौर पर फरार आरोपी एजाज अहमद भट से वेस्टर्न यूनियन के माध्यम से धन प्राप्त किया था और उसका नाम सऊदी अरब के कैडर के माध्यम से आतंकवादी संगठन से धन जुटाने, प्राप्त करने और इकट्ठा करने में भी सामने आया था
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वहीं यूसुफ को विदेश से हिज्ब-उल-मुजाहिदीन से धन प्राप्त करने के आरोप में अक्टूबर 2017 में गिरफ्तार किया गया था और 2018 में उसके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया था। दोनों का मकसद हवाला के जरिए पैसे इकट्ठा करना था ताकि जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी और आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सके और उन्हें वित्तपोषित किया जा सके।