
पीरपैंती विधानसभा सीट, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Pirpainti Assembly Constituency: बिहार के भागलपुर जिले की पीरपैंती विधानसभा सीट (अनुसूचित जाति सुरक्षित), जो झारखंड की सीमा से सटी है और गंगा नदी के किनारे बसी है, अपनी राजनीतिक अस्थिरता और विविधतापूर्ण जातीय समीकरणों के कारण सुर्खियों में है। यह सीट दशकों तक कांग्रेस और वामपंथी दलों (लेफ्ट) के बीच वर्चस्व की लड़ाई का केंद्र रही थी, लेकिन अब मुकाबला पूरी तरह से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बीच केंद्रित हो गया है।
पीरपैंती विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास बेहद रोचक है। 2008 के परिसीमन से पहले यह सामान्य सीट थी, जिसके बाद इसे एससी के लिए आरक्षित कर दिया गया।
पुराना दबदबा: आजादी के बाद सीपीआई (छह बार) और कांग्रेस (पांच बार) का यहां मजबूत दबदबा रहा था।
नए चेहरे: परिसीमन के बाद, यह सीट राजद (चार बार) और भाजपा (दो बार) के बीच बारी-बारी से जाती रही है।
2020 का परिणाम: पिछले विधानसभा चुनाव (2020) में भाजपा के ललन सिंह ने राजद के रामविलास पासवान को हराकर इस सीट पर कब्जा किया। यह जीत भाजपा के लिए महत्वपूर्ण थी, जिसने राजद के मजबूत आधार में सेंध लगाई।
पीरपैंती जिले का सबसे बड़ा प्रखंड है, जहां जातीय विविधता चुनाव परिणाम को निर्णायक रूप से प्रभावित करती है:
निर्णायक आधार: अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के मतदाता सबसे अधिक हैं, जो आरक्षित सीट होने के कारण निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
अन्य समुदाय: इसके अलावा, मुस्लिम, वैश्य, कुर्मी-कोइरी और धानुक समुदाय के वोटर भी अच्छी संख्या में हैं। मुस्लिम और राजद के पारंपरिक आधार (दलित-यादव) की गोलबंदी राजद के लिए महत्वपूर्ण है, जबकि भाजपा अन्य वर्गों (वैश्य और सवर्ण) के वोटों को एकजुट करने की कोशिश करती है।
गंगा नदी पीरपैंती की जीवनरेखा है, जिसका धार्मिक, सांस्कृतिक, कृषि और आर्थिक महत्व है।
अर्थव्यवस्था का आधार: यहां की अर्थव्यवस्था कृषि, मछली पालन और लघु उद्योगों पर आधारित है। पीरपैंती पावर प्लांट क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण बिजलीघर है।
समस्याएं: गंगा नदी के कारण बाढ़ और कटाव की समस्या इस क्षेत्र के लिए एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है, जो हर चुनाव में चुनावी विमर्श का केंद्र होती है।
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सांस्कृतिक धरोहर: यहां का 150 साल पुराना मां काली का मंदिर, 100 साल पुराना शिव मंदिर और पीर की मजार इस क्षेत्र के धार्मिक और सांस्कृतिक सद्भाव को दर्शाते हैं।
2025 का चुनाव यह तय करेगा कि क्या भाजपा अपनी सीट बरकरार रखती है, या राजद ‘बारी’ के पुराने सिलसिले को वापस लाती है।






