शहबाज और सेना प्रमुख मुनीर से मिले ट्रंप, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Trump Sharif White House Meeting: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को वाइट हाउस के ओवल ऑफिस में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर से भेंट की। मुलाकात से पहले ट्रंप ने दोनों की सराहना करते हुए उन्हें शानदार नेता बताया। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, “आज हमारे पास दो बेहतरीन नेता आ रहे हैं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और फील्ड मार्शल। दोनों ही महान व्यक्तित्व हैं और संभव है कि इस वक्त वे यहीं इस कमरे में मौजूद हों।”
यह मुलाकात हाल ही में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच हुए व्यापारिक करार के बाद संपन्न हुई। इससे कुछ दिन पहले दोनों देशों के नेता न्यूयॉर्क में आयोजित संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के दौरान संक्षिप्त रूप से आमने-सामने आए थे। यह बैठक अमेरिका और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए व्यापारिक समझौते के बाद आयोजित की गई। कुछ दिन पहले ही दोनों नेता न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के दौरान भी मुलाकात कर चुके थे। यही वह पाकिस्तान है, जिसे ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में ‘आतंकियों की पनाहगाह; और अमेरिका को छलने वाला देश’ करार दिया था।
न्यूयॉर्क में इस्लामिक अरब देशों के नेताओं के साथ बैठक के दौरान प्रधानमंत्री शरीफ ने मंगलवार को ट्रंप से भी चर्चा की। इससे पहले पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर दो बार अमेरिका की यात्रा कर चुके हैं और उन्हें व्हाइट हाउस में लंच के लिए आमंत्रित भी किया गया था। अपनी मुलाकातों में मुनीर ने यहां तक प्रस्ताव रखा कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराने पर ट्रंप को ‘नोबेल पुरस्कार’ दिया जाना चाहिए।
अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप पाकिस्तान पर तीखे हमले करते रहे। उन्होंने आरोप लगाया था कि पाकिस्तान अमेरिका से मदद लेकर भी आतंकियों को पनाह देता है। जनवरी 2018 में उन्होंने ट्वीट कर कहा था कि 15 साल में अमेरिका ने पाकिस्तान को 33 अरब डॉलर दिए, लेकिन बदले में केवल “झूठ और धोखा” मिला। उसी साल नवंबर में उन्होंने पाकिस्तानी मदद पर रोक लगाने की घोषणा भी की थी। मगर अब हालात बदले हैं पाकिस्तान ने ट्रंप को खनिज संसाधनों, क्रिप्टो समझौते और यहां तक कि ‘नोबेल पुरस्कार’ के वादे के जरिए अपने पक्ष में कर लिया है।
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ट्रंप कई बार यह कह चुके हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम कराने में अहम भूमिका निभाई। उनका दावा है कि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान उन्होंने मध्यस्थ के रूप में हस्तक्षेप किया और दोनों देशों के बीच शांति कायम रखने में मदद की। हालांकि, भारत ने हमेशा साफ किया है कि उसकी सैन्य कार्रवाइयों और रणनीतिक फैसलों में किसी भी विदेशी शक्ति की कोई भूमिका नहीं रही।