अमेरिका के इस चाल से पश्चिम एशिया में मचा हड़कंप, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के बीच वॉशिंगटन में एक गोपनीय मुलाकात हुई, जो करीब दो घंटे तक चली। इस ‘लंच मीटिंग’ के बाद कई सवाल खड़े हो गए हैं। क्या अमेरिका के संकेत पर पाकिस्तान ईरान के विरुद्ध कोई बड़ी कार्रवाई करने जा रहा है? क्या पाकिस्तान एक बार फिर किसी और की जंग का मोहरा बनने को तैयार है?
साथ ही यह भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या चीन को अब अपने बहु-अरब डॉलर के निवेश वाले बलूचिस्तान क्षेत्र को लेकर खतरा महसूस हो रहा है? अमेरिका और इजरायल बनाम ईरान के बढ़ते तनाव के बीच इस गुप्त मुलाकात ने अंतरराष्ट्रीय रणनीति में एक नया मोड़ ला दिया है।
यह ‘लंच मीटिंग’ जितनी चुपके से आयोजित की गई, उसके मायने उतने ही गंभीर हैं। अमेरिका ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि पाकिस्तान में वास्तविक सत्ता इस्लामाबाद के बजाय रावलपिंडी (यानी सेना) के हाथों में है। इस बैठक का मुख्य विषय ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव और संभावित युद्ध के संदर्भ में पाकिस्तान की भूमिका थी।
मीडिया रिुपोर्ट के अनुसार, अमेरिका, पाकिस्तान से हवाई अधिकार और सैन्य ढांचे की सुविधाएं मांग रहा है। अमेरिका को आशंका है कि यदि इजरायल और ईरान के बीच तनाव बढ़ता है, तो खाड़ी क्षेत्र में स्थित उसके सैन्य अड्डों को खतरा हो सकता है। ऐसी स्थिति में, पाकिस्तान की रणनीतिक भौगोलिक स्थिति अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण सैन्य आधार (स्टेजिंग ग्राउंड) के रूप में काम आ सकती है। इस संबंध में अंतिम निर्णय पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ही ले सकते हैं।
हालांकि, पाकिस्तानी सेना के एक बयान में कहा गया कि “ईरान-इजरायल तनाव पर विस्तृत चर्चा हुई,” लेकिन वास्तविक वार्ता का मुख्य विषय हवाई रूट की मंजूरी, सीमा सुरक्षा से जुड़ी खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान और आतंकवाद के खिलाफ साझा रणनीति था।
इजरायल ने मचाई तबाही तो ईरान ने भारत से लगाई गुहार, पाकिस्तान को भी चेताया
चीन भी इस युद्ध में फंसता हुआ नजर आ रहा है। उसने पाकिस्तान के बलूचिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के माध्यम से अरबों डॉलर का निवेश किया है। हालांकि, बलूच विद्रोहियों ने पहले भी चीनी इंजीनियरों को निशाना बनाया है, और अब युद्ध की स्थिति ने सुरक्षा संबंधी खतरों को और बढ़ा दिया है। चीन नहीं चाहता कि ईरान-पाकिस्तान सीमा पर ‘ग्रेटर बलूचिस्तान’ जैसा कोई नया आंदोलन उभरे।
ईरान और भारत के बीच हाल के वर्षों में रिश्तों में सकारात्मक बदलाव आया है, खासकर चाबहार बंदरगाह और ऊर्जा सहयोग जैसे मुद्दों पर दोनों देशों के बीच मजबूत साझेदारी बनी है। हालांकि, इजरायल द्वारा ईरान पर की गई बमबारी के बाद से तनाव बढ़ा है, और ईरान भारत से कुछ नाराजगी महसूस कर रहा है, क्योंकि भारत ने इजरायल की कार्रवाई की सीधी निंदा नहीं की। इस वजह से ईरान, मजबूरी में, पाकिस्तान के करीब जा सकता है, जो क्षेत्रीय स्तर पर भारत के लिए एक नई रणनीतिक चुनौती पैदा कर सकता है।