
तालिबान ने पाकिस्तान टेंशन, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Pakistan Afghanistan War: तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में पाकिस्तान और अफगान तालिबान के बीच हुई वार्ता एक बार फिर बिना किसी समझौते के खत्म हो गई। इस बैठक का मकसद दोनों पक्षों के बीच बढ़ते तनाव को कम करना था लेकिन इस बार विवाद का केंद्र कोई राजनीतिक या सीमाई मसला नहीं, बल्कि धार्मिक आदेश यानी ‘फतवा’ था।
पाकिस्तान ने वार्ता में अफगान तालिबान से यह आग्रह किया कि उनके सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदजादा यह ऐलान करें कि पाकिस्तान में जारी सशस्त्र संघर्ष इस्लाम के खिलाफ है। यानी, पाकिस्तान चाहता था कि अफगान तालिबान खुले तौर पर पाकिस्तान के खिलाफ लड़ रही तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) की जंग को “गैर-इस्लामी” घोषित करें।
लेकिन अफगान तालिबान ने यह मांग सख्ती से ठुकरा दी। अफगान सरकार में उप गृह मंत्री और तालिबान वार्ता दल के प्रमुख रहमतुल्लाह नजीब ने स्पष्ट किया कि “अमीर हुक्म देते हैं, फतवे नहीं। उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान को किसी धार्मिक राय की जरूरत है तो उसे दारुल इफ्ता (फतवा जारी करने वाली संस्था) में औपचारिक आवेदन करना होगा।
नजीब ने यह भी कहा कि पाकिस्तान को अपने पक्ष में फतवा मिलने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि शरीयत जो कहेगी, वही होगा। उन्होंने जोड़ा कि अफगान तालिबान किसी ऐसी लड़ाई पर फतवा नहीं दे सकता जो अफगानिस्तान की सीमाओं से बाहर लड़ी जा रही हो।
अफगान तालिबान ने पाकिस्तान के सामने दो शर्तें रखीं —
दूसरी तरफ, पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा कि उनका इस्तांबुल दौरा TTP के खिलाफ ठोस कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए था। पाकिस्तान चाहता है कि अफगान तालिबान TTP को आतंकी संगठन घोषित करे और उसके सदस्यों को अफगान सरजमीं से बाहर निकाले।
मगर तालिबान ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि अफगानिस्तान में कोई विदेशी आतंकी समूह मौजूद नहीं है। साथ ही, उन्होंने TTP को आतंकी घोषित करने से साफ इनकार कर दिया।
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इस तरह एक बार फिर यह वार्ता नतीजे तक नहीं पहुंच पाई। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक दोनों पक्ष एक-दूसरे की धार्मिक और सुरक्षा चिंताओं को गंभीरता से नहीं लेंगे, तब तक इस विवाद का समाधान मुश्किल है।






