एशिया में महायुद्ध के बादल, फोटो ( सो. सोशल मीडिया )
नवभारत इंटरनेशनल डेस्क: 2025 में ताइवान पर चीन के हमले की आशंका पहले से ज्यादा बढ़ गई है। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों के मुताबिक, चीन लगातार अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ा रहा है और ताइवान के पास कई सैन्य अभ्यास भी कर चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ताइवान को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है और संभवतः उसे बलपूर्वक अपने नियंत्रण में लाने की कोशिश कर सकता है।
दूसरी ओर, ताइवान ने भी अपनी सुरक्षा को मजबूत किया है और उसे अमेरिका जैसे देशों का समर्थन प्राप्त है। हाल ही में ताइवान को अमेरिकी एफ-16 वाइपर लड़ाकू विमान मिलने की खबरें भी सामने आई हैं। फिलहाल कोई सैन्य कार्रवाई नहीं हुई है, लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है, जिससे पूरे एशियाई क्षेत्र में शांति को खतरा पैदा हो सकता है।
2 अप्रैल को, ब्रिटेन ने अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान के साथ मिलकर ताइवान के आसपास चीन के सैन्य अभ्यास को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने सभी पक्षों से संयम बरतने और क्षेत्र में शांति बनाए रखने का आग्रह किया। ब्रिटेन के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता ने कहा कि यह सैन्य गतिविधि तनाव बढ़ा रही है और ताइवान स्ट्रेट में संभावित खतरनाक स्थिति उत्पन्न कर सकती है।
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बता दें कि चीन ताइवान को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है, इसलिए वह वहां किसी भी बाहरी हस्तक्षेप का विरोध करता है। उसकी विदेश नीति के अनुसार, दुनिया में केवल एक ही चीन है और ताइवान उसी का भाग है। यही कारण है कि चीन केवल उन देशों से कूटनीतिक संबंध स्थापित करता है, जो ताइवान को एक अलग राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं देते। दूसरी ओर, ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है और अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के समर्थन से चीन के दबाव का सामना करता रहा है।
दरअसल, चीन ताइवान पर नियंत्रण पाने की कोशिश करता है क्योंकि उसकी भौगोलिक स्थिति बीजिंग के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। ताइवान समुद्री व्यापार मार्गों और वैश्विक तकनीकी आपूर्ति श्रृंखलाओं के केंद्र में स्थित है। चीन नहीं चाहता कि अमेरिका जैसे देश इसे अपने सैन्य अड्डे या प्रभाव क्षेत्र के रूप में इस्तेमाल करें। ताइवान विशेष रूप से सेमीकंडक्टर उद्योग (जैसे TSMC) में अग्रणी है, और चीन अपनी तकनीकी क्षमता बढ़ाने के लिए इस पर नियंत्रण चाहता है।