अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (सोर्स - सोशल मीडिया)
कैलिफोर्नियां: डोनाल्ड ट्रंप के बहुचर्चित लिबरेशन डे की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है, और यह दिन आते ही वैश्विक व्यापार के नियम बदल सकते हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप उन देशों पर भारी शुल्क लगाने की तैयारी कर रहे हैं, जिनका अमेरिका के साथ व्यापार असंतुलन है। उनके इस फैसले का सबसे ज्यादा असर उन 15 देशों पर पड़ेगा, जिन्हें उनके प्रशासन ने डर्टी 15 करार दिया है। इस सूची में चीन, यूरोपीय संघ, मैक्सिको, वियतनाम, ताइवान, जापान, दक्षिण कोरिया, कनाडा और भारत जैसे देश शामिल हैं। रेसिप्रोकल टैरिफ को 2 अप्रेल बुधवार से डर्टी 15 देशों की घोषणा के साथ लागू किया जा सकता है।
ट्रंप का मानना है कि दुनिया के अधिकतर देश अमेरिका का व्यापारिक फायदा उठा रहे हैं और इसे ठीक करने के लिए वह रेसिप्रोकल टैरिफ यानी बदले में शुल्क लगाने की नीति अपनाने जा रहे हैं। लेकिन कई विशेषज्ञ इस कदम को एक बड़े व्यापार युद्ध की शुरुआत के रूप में देख रहे हैं, जिसमें चीन, कनाडा और यूरोपीय संघ जैसे बड़े देश जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं। सवाल यह है कि क्या यह रणनीति अमेरिका की अर्थव्यवस्था को मजबूती देगी या वैश्विक व्यापार तंत्र को हिला कर रख देगी?
डर्टी 15 उन देशों की लिस्ट है, जो अमेरिका को ज्यादा निर्यात करते हैं और बदले में अमेरिका से कम माल खरीदते हैं। इस व्यापारिक असंतुलन के चलते ट्रंप की सरकार इन्हें टैरिफ के जरिए सबक सिखाना चाहती है। ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया है कि यह शुल्क सभी देशों पर लागू होगा, चाहे वे अमेरिका के करीबी सहयोगी ही क्यों न हों। इस फैसले को लेकर पूरी दुनिया में हलचल मची हुई है। भारत जैसे कुछ देश अपने आयात शुल्क में कमी करने पर विचार कर रहे हैं ताकि टैरिफ से बचा जा सके। वहीं, चीन और कनाडा पहले ही अमेरिका के खिलाफ जवाबी टैरिफ लगा चुके हैं। इस फैसले के प्रभाव का अंदाजा अभी पूरी तरह से नहीं लगाया जा सकता, लेकिन यह जरूर तय है कि इससे वैश्विक व्यापार प्रभावित होगा।
ट्रंप की अप्रत्याशित रणनीतियों के कारण यह अनुमान लगाना मुश्किल हो रहा है कि यह कदम केवल एक समझौता वार्ता का तरीका है या फिर वास्तव में एक नई व्यापार नीति की शुरुआत। कुछ अर्थशास्त्री इसे महज एक दबाव बनाने की रणनीति मान रहे हैं, जबकि कुछ का मानना है कि इससे बाजारों में अस्थिरता आ सकती है, जिससे उपभोक्ताओं को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी और कंपनियों को उत्पादन लागत में बढ़ोतरी झेलनी पड़ेगी।
इस फैसले के विरोध में अमेरिकी ऑटोमोबाइल कंपनियां भी आ गई हैं। फोर्ड, जनरल मोटर्स और स्टेलांटिस जैसी दिग्गज कंपनियों का कहना है कि यदि ट्रंप 25% ऑटोमोबाइल टैरिफ लागू करते हैं, तो अमेरिका में गाड़ियों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हो सकती है। कृषि क्षेत्र के व्यवसाय भी चिंतित हैं क्योंकि अन्य देश अमेरिकी कृषि उत्पादों पर जवाबी शुल्क लगा सकते हैं, जिससे किसानों को नुकसान होगा।
ट्रंप ने यह साफ कर दिया है कि उनके नए टैरिफ में कोई देश छूट नहीं पाएगा। लेकिन सवाल यह है कि यह शुल्क कब तक लागू रहेंगे? क्या अगर देश अमेरिका के साथ नई व्यापारिक शर्तों पर सहमत होते हैं, तो यह टैरिफ हटाए जा सकते हैं? अभी इन सवालों के जवाब नहीं मिले हैं, लेकिन यह तय है कि दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं इस फैसले से प्रभावित होने वाली हैं।
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अब सभी की नजरें बुधवार पर टिकी हैं, जब ट्रंप के लिबरेशन डे का आगाज होगा। यह दिन वैश्विक व्यापार का नया अध्याय लिख सकता है या फिर एक बड़े आर्थिक संघर्ष की शुरुआत कर सकता है।