राजकुमार भाटी, अखिलेश यादव (फोटो- सोशल मीडिया)
UP Politics: उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों और दलित पॉलिटिक्स करने वाले सियासदानों को बड़ा झटका लगा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए पिछले दिनों आदेश दिया था कि सार्वजिनक स्थलों व पुलिस रिकॉर्ड में जाति के उल्लेख पर रोक लगाई जाए। अब इसी आदेश के आड़ में योगी सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर जाति के उल्लेख पर रोक लगा दी है।
इसको लेकर यूपी के कार्यवाहक मुख्य सचिव ने प्रदेश के सभी आला अधिकारियों को लिखित निर्देश दिया है कि नया आदेश लागू होने के बाद राज्य में किसी भी राजनीतिक संगठन और सामाजिक संगठन का जाति आधारित कोई भी कार्यक्रम न होने पाए। सरकारी की तरफ से जारी फरमान का सीधा असर समाजवादी पार्टी के गुर्जर सम्मेलन पर पड़ेगा। इसके अलावा अखिलेश यादव जिस पीडीए फॉर्मले के तहत यूपी की सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं, यह आदेश उसके लिए भी झटका है।
हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए मुख्य सचिव दीपक कुमार ने राज्य के सभी आला अधिकारियों को निर्देश दिया है कि प्रदेश सरकार की घोषित नीति है कि राज्य में एक सर्वसमावेशी और संवैधानिक मूल्यों के अनुकूल व्यवस्था लागू हो। इसके अलावा मुख्य सचिव ने कहा कि एफआईआर और गिरफ्तारी मेमो में जाति नहीं लिखी जाएगी, बल्कि माता पिता का नाम लिखा जाएगा। इसके अलावा वाहनों, साइन बोर्डों से जातीय संकेत के नारे हटाए जाएंगे। सोशल मीडिया पर जाति आधारित कंटेंट पर रोक लगाई जा रही है।
योगी सरकार का यह आदेश ऐसे समय में आया है, जब पंचायत चुनाव माथे पर है और विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं। खास करके समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जातीय समीकर सेट करने में जुटी हुई थीं। अब जातीय संकतों पर रोक के कारण दोनों पार्टियों की योजनाओं पर ग्रहण लग गया है। अब दोनों पार्टियों को रणनीति बदलनी पड़ेगी। इतना ही इस फैसले का असर NDA की सहयोगी पार्टियों पर भी पड़ेगा। जिसमें राष्ट्रीय लोकदल, निषाद पार्टी, सुभासपा जैसी पार्टियां शामिल हैं।
दरअसल 2027 विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की जड़ें राजकुमार भाटी मजूबत करने में जुटे हुए हैं। इसके लिए वे गुर्जर सम्मेलन कर रहे हैं। वे यूपी के 34 जिलों की 132 विधानसभा सीटों पर छोटी-छोटी गुर्जर चौपाल और रैलियां कर रहे हैं। जहां गुर्जर समुदाय के लोग चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं। सरकारी फरमान के बाद गुर्जर सम्मेलन संकट में आ गया है।
वहीं सरकार के फैसले पर राजकुमार भाटी ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा” क्या गुर्जर समाज की राजनीतिक जागरूकता से डर गई उत्तर प्रदेश सरकार? इसका अर्थ तो यही लगाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश सरकार ने 21 सितम्बर को रविवार के दिन शासनादेश जारी करके उत्तर प्रदेश में जातीय रैलियों और सम्मेलनों पर रोक लगा दी है।”
ये भी पढें- अहमदाबाद प्लेन क्रैश: ‘पायलट की गलती’ पर ‘सुप्रीम’ सवाल, DGCA और AAIB को थमाया नोटिस, अब क्या होगा?
बता दें कि गाजियाबाद, नोएडा, बिजनौर, संभल, मेरठ, सहारनपुर, कैराना जिले की करीब दो दर्जन सीटों पर गुर्जर समुदाय निर्णायक रोल अदा करते है, जहां पर 20 से 70 हजार के करीब गुर्जर वोट है। ऐसे में गुर्जर वोट बैंक किसी भी दल का बिगड़ा काम बना सकता है, खास कर समाजवादी पार्टी के लिए गुर्जर वोटबैंक काफी अहम है।