इन राज्यों में जारी रहेगी नो डिटेंशन पॉलिसी, मोदी सरकार का फैसला मानने से इनकार
लखनऊ : उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षा प्रणाली को और अधिक कार्यात्मक और व्यवहार्य बनाने के नाम पर ऐसे स्कूलों को बंद करके पड़ोस के स्कूलों में विलय करने जा रही है, जहां पर 50 से भी कम छात्रों के नामांकन है। एकीकरण योजना के हिस्से के रूप में इन स्कूलों के छात्रों को उनकी निरंतर शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए नजदीकी सुविधाओं में समायोजित किया जाएगा। ऐसी संभावना है कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने 27,764 प्राइमरी और जूनियर स्कूलों को बंद कर देगी।
इस बारे में अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि 50 से कम नामांकन वाले प्राथमिक विद्यालयों (स्वतंत्र) के आंकड़ों के आधार पर प्राथमिकता के आधार पर एक सैद्धांतिक अभ्यास पूरा किया जाना चाहिए। उन्हें एक उचित दस्तावेज और जिला पुस्तिका तैयार करने के लिए कहा गया है, जिसमें विस्तार से बताया गया हो कि किन स्कूलों को विलय किया जा सकता है, बच्चों को कितनी दूरी तय करनी होगी, भवन, शिक्षक, परिवहन, सड़क और राजमार्गों की उपलब्धता की स्थिति क्या है।
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इस बारे में बताया जा रहा है कि सरकार ने इस मुद्दे पर 13-14 नवंबर को एक मीटिंग बुलायी है। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों की इस बैठक में इस विलय को लेकर चर्चा की जाएगी।
प्रियंका बोलीं- दलित और पिछड़ों के खिलाफ फैसला
उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने 27,764 प्राइमरी और जूनियर स्कूलों को बंद करने का फैसला लिया जाना पूरी तरह से गलत है। यह कदम शिक्षा क्षेत्र के साथ-साथ दलितों, पिछड़ों, गरीबों और वंचित तबकों के बच्चों का हक छीनने जैसा है। यह उनके अधिकारों के खिलाफ है। यूपीए सरकार शिक्षा का अधिकार कानून लाई थी, जिसके तहत व्यवस्था की गई थी कि हर एक किलोमीटर की परिधि में एक प्राइमरी विद्यालय खोला जा रहा था, ताकि हर तबके के बच्चों के लिए स्कूल सुलभ हो। कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं का मकसद मुनाफा कमाना नहीं बल्कि जनता का कल्याण करना है। भाजपा नहीं चाहती कि कमजोर तबके के बच्चों के लिए शिक्षा सुलभ हो।
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मायावती बोलीं- गरीबों के बच्चे आखिर कहां पढ़ेंगे
बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा 50 से कम छात्रों वाले बदहाल 27,764 परिषदीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों को बंद करने का फैसला पूरी तरह से गलत है। ऐसी हालत में गांव के पास रहने वाले गरीबों के बच्चे आखिर कहां और कैसे पढ़ेंगे।