बल्लालेश्वर मंदिर (सौजन्य-एक्स)
नवभारत डेस्क: आज हम आपको श्री गणेश के उस मंदिर के बारे में बताने जा रहे है, जहां गणेश जी के पहले उनके भक्त का नाम लिया जाता है। इस मंदिर का नाम है – बल्लालेश्वर मंदिर जो भक्त को समर्पित है। इस मंदिर में गणेश श्रद्धालुओं के दुख हरने आते है। इस गणेश चतुर्थी इस गणेश मंदिर के दर्शन करने जरूर जाए।
बल्लालेश्वर पाली हिंदू भगवान गणेश के आठ मंदिरों में से एक है। गणेश मंदिरों में, बल्लालेश्वर एकमात्र ऐसा मंदिर है जो गणेश को तो समर्पित है, लेकिन इसे उनके भक्त के नाम से जाना जाता है। यह बल्लालेश्वर मंदिर पाली गांव में स्थित है जो भारत के महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में रोहा से 28 किमी दूर है। यह सरसगढ़ किले और अंबा नदी के बीच स्थित है ।
विनायक की मूर्ति एक पत्थर के सिंहासन पर बैठी है, जिसका मुख पूर्व की ओर है और सूंड बाईं ओर मुड़ी हुई है और वह चांदी की पृष्ठभूमि के सामने बैठी है जिस पर ऋद्धि और सिद्धि चमरज लहराते हुए दिखाई दे रही हैं। मूर्ति की आंखों और नाभि में हीरे जड़े हुए हैं। इस मंदिर को इस तरह से बनाया गया है कि सूरज की पहली किरण सीधे मंदिर की मूर्ति पर पड़ती है।
बल्लालेश्वर मंदिर (सौजन्य-एक्स)
इस मंदिर को लेकर एक दंत कथा काफी प्रसिद्ध है। पाली गांव में कल्याण नाम का सफल व्यापारी अपनी पत्नी इंदुमती और बेटे बल्लाल के साथ रहता था। उनका बेटा और गांव के बच्चे पत्थरों को मूर्तियों के रूप में पूजा करते थे। एक बार गांव के बाहरी इलाके में बच्चों को एक बड़ा पत्थर दिखा जिसे बल्लाल के आग्रह पर बच्चे पूजने लगे और समय का सूध-बूध खो बैठे।
गांव में जब बच्चे वापस नहीं आए कल्याण ने एक छड़ी ली और बच्चों की तलाश में निकले बच्चों को उन्होंने पत्थर के सामने गणेश पुराण गाते सुना। तब गुस्से में कल्यण ने मूर्ती तोड़ दी और बल्लाल को बहुत मारा जब तक कमीज खून से न रंग गई और बल्लाल को एक पेड़ से बांध कर चले गए और कहा- “अब देखते हैं कौन सा भगवान तुम्हारी रक्षा करता है!”
गणेश के अपमान के लिए बल्लाल ने पिता को श्राप दिया और नाम जपने लगे जब तक वे बेहोश नहीं हो गए। जागने के बाद बल्लाल ने गणेश को पुकारा तो गणेश स्वयं साधु के भेस में मदद करने आए और उन्हें पेड़ से खोल दिया। गणेश को देखते ही उनकी भूख – प्यास मिट गई, घाव भर गए। गणेश ने उनकी भक्ति देख उनसे वरदान मांगने को कहा, तो बल्लाल ने विनती कि, हे गणेश मै आपका अटूट भक्त हूं। मै चाहता हूं कि आप हमेशा इस स्थान पर रहे और आपकी शरण में आने वाले लोगों के दुखों को दूर करें।”
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उनकी विनती गणेश ने सुनी और कहा कि “मैं हमेशा यहीं रहूंगा और अपने नाम से पहले तुम्हारा नाम लूंगा, और बल्लाल के भगवान (बल्लाल ईश्वर) के रूप में पूजा जाऊंगा।” उन्होंने बल्लाल को गले लगाया और पास के पत्थर में खुद को स्थापित कर लिया। उस टूटे पत्थर की दरारें गायब हो गईं और फिर से पूरी तरह से बन गईं।
आज उसी पत्थर की मूर्ति को बल्लालेश्वर कहा जाता है। कल्याण ने जिस पत्थर की मूर्ति को जमीन पर फेंका था, उसे धुंडी विनायक के नाम से भी जाना जाता है। यह एक स्वयंभू मूर्ति है और बल्लालेश्वर की पूजा से पहले इसकी पूजा की जाती है।
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इस गणेश चतुर्थी अगर आप बाप्पा के दर्शन करने जा रहे है तो एक बार रायगढ़ पाली में स्थित इस मंदिर में दर्शन करने जरूर जाए।