महिला पंचायत (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: देश के पिछड़े क्षेत्रों में महिला पंचायत प्रधान की बजाय उनके पति इस पद के अधिकारों का अवैध तरीके से इस्तेमाल करते हैं. इसकी जांच करने के लिए पंचायत राज मंत्रालय ने एक पैनल गठित किया था जिसने अपनी सिफारिशें पेश कर दी हैं. पंचायती राज संस्थाओं में 46.6 प्रतिशत महिला प्रतिनिधि हैं बिहार में तो मुख्यमंत्री नीतीशकुमार ने पंचायतों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दे रखा है।
इतने पर भी आत्मविश्वास की कमी, प्रशिक्षण के अभाव तथा पुरुष वर्चस्व वाली मानसिकता के चलते ये महिलाएं अपने हक से वंचित रह जाती हैं. उनके पति या परिवार का कोई अन्य पुरुष सदस्य सारे निर्णय लेता है. निर्णय प्रक्रिया में महिला सरपंच से पूछा नहीं जाता, न कोई राय ली जाती है. यह सिर्फ बताई जगह पर अंगूठा लगाती या हस्ताक्षर करती है. त्रिस्तरीय प्रशासन की बुनियाद पंचायत राज है फिर भी वहां ऐसी धांधली लगातार चल रही है।
जांच पैनल की रिपोर्ट के बाद पंचायतों में महिला सरपंचों को उनके अधिकार के बारे में समझाने की पहल की जा रही है. वार्ड स्तर पर समितियां बनाने, महिला लोकपाल (ओम्बुडसमैन) की नियुक्ति करने, ग्राम सभा में महिला पंचायत प्रधान का सार्वजनिक शपथ समारोह कराने, महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने जैसे कदम उठाए जाएंगे. प्रधानपति को दंडित किया जाए या नहीं, यह भी एक प्रश्न है. 73वें संविधान संशोधन में महिलाओं को पंचायतों में एक तिहाई प्रतिनिधित्व दिया गया था. 2024 में देश के 21 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों ने पंचायतों में 50 प्रतिशत महिला आरक्षण पर सहमति दी।
इतने पर भी महिला प्रधान के पति सारा अधिकार हड़पते चले गए. यह कानून की भावना के विपरीत था. 2023 में ग्रामीण विकास और पंचायत राज से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने सिफारिश की कि महिला सरपंचों को सक्षम बनाने के लिए कामकाज का प्रशिक्षण दिया जाए. इतने पर भी महिला सरपंच अपने पति को अधिकार सौंपती रहीं. पंचायत में महिला आरक्षण के दुरुपयोग को लेकर 6 जुलाई 2023 को याचिका दायर की गई थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब महिलाएं खुद अपने पति को अधिकार दे रही हैं तो न्यायिक हस्तक्षेप से क्या होगा?
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सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला पंचायत राज मंत्रालय को सौंप दिया। इसके बाद मंत्रालय ने सलाहकार पैनल गठित किया जिसने महिला सरपंचों को उनके अधिकारों के प्रति सजग कर प्रशिक्षण देने की जरूरत पर जोर दिया. प्रधानपति को भी ताकीद दी जाएगी कि वह अपनी महिला प्रधान पत्नी के अधिकार में हस्तक्षेप न करे. जिस प्रकार संसद व विधानसभाओं में महिलाएं अपने अधिकार का उपयोग करती हैं वैसी ही जागृति पंचायतों में भी आने की उम्मीद की जा रही है।