लद्दाख में हिंसा की आग (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: लेह में हिंसा के बाद अब तनावपूर्ण शांति है। पूरे जिले में कर्फ्यू लगा हुआ है। लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा और उसे संविधान की छठी सूची में शामिल करने की मांगों को लेकर क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक और उनके साथी 10 सितम्बर से भूख हड़ताल पर बैठे हुए थे कि 23 सितम्बर 2025 को उनमें से 2 व्यक्तियों की तबियत बहुत अधिक खराब हो गई, जिसके विरोध में अगले दिन हजारों की संख्या में युवा सड़कों पर उतर आये। यह प्रदर्शन हिंसक हो गया। उग्र भीड़ ने बीजेपी के स्थानीय कार्यालय में आग लगा दी, अन्य जगहों पर भी आगजनी, पथराव व हिंसक टकराव की घटनाएं हुईं।
हालात को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने गोलियां चलाईं, 4 व्यक्तियों की मौत हो गई व 80 से अधिक लोग घायल हैं। लगभग 50 व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया है। सोनम वांगचुक का कहना है कि हिंसा ने उनकी 5 साल की शांतिपूर्ण कोशिशों को पटरी से उतार दिया है, लेकिन साथ ही उन्होंने सभी से शांति बनाये रखने की अपील करते हुए बताया कि मांगे न मानी जाने की वजह से युवाओं में कुंठा व रोष बढ़ता ही जा रहा था, विशेषकर बेरोजगारी में निरंतर वृद्धि होने से। 5 अगस्त 2019 को धारा 370 निरस्त किये जाने के बाद जम्मू कश्मीर पुनर्गठन क़ानून बनाया गया था और लद्दाख को ‘बिना विधानसभा के’ अलग केंद्र शासित प्रदेश की मान्यता दी गई थी। दिल्ली व पांडिचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों की अपनी अपनी विधानसभाएं हैं।
लद्दाख को धारा 370 के तहत जो विशेष संवैधानिक दर्जा प्राप्त था, उसे भी समाप्त कर दिया गया। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की तरह लद्दाख की अपनी विधानसभा नहीं है। लेकिन उसके पास चुनी हुई दो पहाड़ी परिषदें हैं- लद्दाख ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल कारगिल (एलएएचडीसी) और एलएएचडीसी-लेह। इस क्षेत्र के माइक्रो प्रशासनिक कार्यों का भार इन्हीं दो परिषदों पर है। वर्ष 2022 से लेह व कारगिल के दोनों सामाजिक-राजनीतिक गठबंधन (लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायन्स) सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं कि बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा अर्थहीन है।
दोनों जिलों ने जबरदस्त अभियान छेड़ा हुआ है, यह मांग करते हुए कि राज्य का दर्जा बहाल करने के साथ ही विधानसभा दी जाये। सर्वसम्मति से संविधान के छठे शेड्यूल और अनुच्छेद 371 के तहत विशेष दर्जे की भी मांग है जैसा कि मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम व अन्य उत्तरपूर्व के राज्यों को प्राप्त है। लद्दाख के लोगों का तर्क है कि अगर इस क्षेत्र को बाहर के लोगों व निवेश के लिए खोल दिया जायेगा, तो इससे ‘इकोलोजिकली अति नाजुक व संवेदनशील क्षेत्रों’ पर कुप्रभाव पड़ेगा। लद्दाख में गिलगिट-बाल्टिस्तान को मिलाकर क्षेत्रीय नियंत्रण विस्तार की मांग भी साथ में की जा रही है। 1947 से पहले गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र भी लद्दाख जिले का ही हिस्सा था।
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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 25 सितम्बर 2025 को वांगचुक की एनजीओ स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (एसबीसीएमओएल) का लाइसेंस रद्द कर दिया दिया है जोकि फॉरेन कॉन्ट्रब्यूशन (रेगुलेशन) एक्ट 2010 (एफसीआरए) के तहत जारी किया गया था। सरकार का कहना है कि इस कानून का उल्लंघन किया गया है। जो फंड्स स्थानीय तौर पर एकत्र किये गए थे, उन्हें एसबीसीएमओएल के एफसीआरए खाते में जमा किया गया, फंड्स को उन गतिविधियों में खर्च किया गया जिनकी अनुमति नहीं दी गई थी और विदेश से जो फंड्स मिले थे, उन्हें एफसीआरए खाते में जमा नहीं किया गया। गृह मंत्रालय का आरोप है कि लद्दाख में हिंसा वांगचुक के भड़काऊ भाषणों की वजह से हुई, जिनमें उन्होंने अरब संप्रंग शैली के प्रदर्शनों और नेपाल के जेन-जी आंदोलनों का उल्लेख किया था। गृह मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि वांगचुक द्वारा स्थापित हिमालयन इंस्टिट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स के सात खाते हैं जिनमें से चार अघोषित हैं।
लेख-विजय कपूर के द्वारा