(डिजाइन फोटो)
हरियाणा में अप्रत्याशित जीत के बाद भाजपा का दावा है कि उसने उस नैरेटिव को बदल दिया है, जो लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने बनाने की कोशिश की थी। महाराष्ट्र में 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा स्पष्ट तौर पर बैकफुट पर थी।
यहां 48 लोकसभा सीटों में से शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरद पवार गुट) ने 30 और भाजपा तथा शिवसेना (शिंदे गुट) को कुल 17 सीटें मिली थीं, जबकि एक सीट इंडिपेंडेंट के खाते में गई थी। इस तरह लोकसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक ने स्पष्ट तौर पर महाराष्ट्र में बढ़त हासिल की थी, इस बढ़त का सबसे बड़ा कारण चुनाव प्रचार में उद्धव ठाकरे और शरद पवार का तूफानी प्रचार था।
उद्धव ठाकरे ने तो मानो इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था और जिस तरह से उन्होंने पूरे महाराष्ट्र का तूफानी दौरा किया था, उसके बाद हर कोई बिना कहे यह मान रहा था कि वह आगामी विधानसभा चुनाव में विपक्ष के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। समय से पहले इस अनुमान के चर्चा में आ जाने के कारण इस पर शरद पवार की तरफ से नाखुशी दिखाई गई जिस कारण यह चर्चा जहां थी, वहीं ठहर गई।
इस बीच मीडिया द्वारा यह माना जाता रहा है कि महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी की तरफ से उद्धव ही मुख्यमंत्री का अघोषित चेहरा होंगे। अगर हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे वही आते, जो एग्जिट पोल में दिख रहे थे, तो शायद महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव को कांटे का न मानकर इंडिया ब्लॉक की तरफ झुका हुआ माना जाता। हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद बीजेपी उत्साह से लबरेज हैं। लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति पर जमीनी नजर रखने वाले मीडिया एक्सपर्ट अभी भी मानते हैं कि हरियाणा का असर महाराष्ट्र में नहीं दिखेगा।
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जिस तरह से महाराष्ट्र की राजनीति में एक दो नहीं बल्कि छह पार्टियों का थोड़े 19-20 के साथ साझा प्रभाव है, उसे देखते हुए सिर्फ एक प्रदेश में हुए उलटफेर से महाराष्ट्र का माहौल बदलता नहीं दिख रहा। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद घर में नहीं बैठे बल्कि लगातार वह चुनावी मोड में ही हैं। इससे प्रदेश के सियासी माहौल में उनका प्रभाव न सिर्फ इंडिया ब्लॉक की दूसरी पार्टियों के मुकाबले ज्यादा नजर आया बल्कि इस समय वह प्रदेश में मुख्यमंत्री के लिए सबसे लोकप्रिय चेहरा नजर आ रहे हैं।
अब जो स्थिति है उसमें महाविकास अघाड़ी में शामिल दलों को फिर से सोचना चाहिए और व्यवहारिक यही होगा कि वो उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री का चेहरा पेश करके महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़े। इसके कई महत्वपूर्ण कारण हैं। पहला तो यह कि इस समय उद्धव ठाकरे प्रदेश के सबसे लोकप्रिय सियासी चेहरे हैं, भले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 9 सीटें ही मिली हों, लेकिन अगर महाविकास आघाड़ी में शामिल बाकी सभी पार्टियों को देखें तो शिवसेना (यूबीटी) का पिछले दो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी से बेहतर रिकॉर्ड है।
साल 2014 विधानसभा चुनाव में जहां उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में तत्कालीन शिवसेना को 63 सीटें मिली थीं, जो कि 2009 के मुकाबले 19 सीटें ज्यादा थीं, वहीं 2019 के विधानसभा चुनाव में उसे 56 सीटें मिली थीं। जबकि 2019 में कांग्रेस को 44 और एनसीपी को 54 सीटें मिली थीं। 2014 में कांग्रेस को 42 और एनसीपी को 41 सीटें मिली थीं।
आंकड़ों के नजर से देखें तो उद्धव ठाकरे की नेतृत्व वाली शिवसेना ने अपनी मौजूदा दोनों गठबंधन वाली पार्टियों के मुकाबले दोनो ही बार के चुनाव में बेहतर नतीजे हासिल किए थे। लेकिन अगर ये तकनीकी आधार न हो तो भी उद्धव ठाकरे एक तरह से महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बिना पेश किए या बिना प्रायोजित किए भी महाराष्ट्र के स्वाभाविक मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में उभरकर सामने आये हैं। जबकि एनसीपी और कांग्रेस दोनों के पास ही ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जिसे आगामी चुनाव में पेश करके विधानसभा चुनाव लड़ने का जोखिम लिया जा सके।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा