नेपाल में युवा क्रांति के बाद सुव्यवस्था जरूरी (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: देखा जाए तो लगभग 15 वर्ष पहले सोशल मीडिया के बगैर भी लोग रहते थे। इसे मनोरंजन और आपसी संवाद का सस्ता साधन माना गया लेकिन अब यह हर व्यक्ति के जीवन का अंग बन गया है और लोग इसके बिना रह नहीं सकते। नेपाल में यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक, वाट्सएप व स्नैपचैट जैसे 26 सोशल मीडिया एप्स पर प्रतिबंध लगाने से युवा असंतोष का लावा फूट पड़ा। 1997 के बाद जन्म लेनेवाली पीढ़ी (जेन-जी) भड़क उठी। सत्ताधीशों से नाराजगी तो पहले ही थी लेकिन इस बैन से आंदोलन को उत्तेजना मिल गई। इन एप्स से कितने ही नेपाली युवाओं की रोजी-रोटी जुड़ी हुई थी। सामान की बिक्री, सेवाएं, परामर्श, मनोरंजन, पर्यटन सबका सोशल मीडिया से नाता था।
नेपाल सरकार रोजगार पैदा नहीं कर पा रही थी बल्कि एप्स पर प्रतिबंध लगाकर उसने रोजगार का साधन ही छीन लिया था। जेन-जी ने भ्रष्टाचार और स्वेच्छाचार बर्दाश्त नहीं किया और उन पुराने नेताओं को अपना निशाना बनाया जो पारी-पारी से सत्ता संभाल रहे थे लेकिन गरीब जनता के लिए कुछ करने की बजाय अपना घर भर रहे थे। यह बात सामने आई कि नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली हर साल स्विस बैंक से 1.87 करोड़ रुपए ब्याज लेते हैं। वहां के मिराबाड बैंक में उनके 41 करोड़ रुपए जमा हैं। नेपो किड्स या नेता पुत्रों की लग्जरी लाइफ स्टाइल भी जेन-जी को बर्दाश्त नहीं हुई। जब एक बालिका को कुचलकर बिना रुके सरकारी गाड़ी भाग निकली तो जनरोष भड़क उठा। बढ़ती बेरोजगारी तथा अकूत धनसंपत्ति का नेताओं के हाथों में केंद्रित होना युवाओं को बुरी तरह अखर रहा था। श्रीलंका और बांग्लादेश के बाद जेन-जी ने नेपाल सरकार को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया।
पता नहीं इस चर्चा का कितना आधार है कि इन देशों में अमेरिका ने उलटफेर करवाया है। वैसे नेपाल का पिछले 2 दशकों का इतिहास उठापटक का रहा है वहां के लोगों ने सदियों से चली आ रही राजशाही को खत्म किया था। इतने पर भी जो सरकारें आईं उन्होंने जनभावना की कद्र नहीं की। अव्यवस्था फैलने के बाद शांति व स्थिरता लाना काफी चुनौतीपूर्ण होता है। अब जेन-जी नेपाल की अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए 3 नामों पर विचार कर रही है। एक तो हैं सुशीला कर्की जो नेपाल सुप्रीम कोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस हैं। दूसरे हैं काठमांडु के महापौर बालेंद्र शाह और तीसरे हैं नेपाल विद्युत बोर्ड के पूर्व सीईओ कुलमान घीसिंग। सुशीला की आयु 73 वर्ष है इसलिए युवाओं से उनका तालमेल हो पाना कठिन है।
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इस लिहाज से बालेंद्र शाह ज्यादा लोकप्रिय हैं। उनकी रैपर के रूप में भी पहचान है। अब नेपाल के राजनीतिक दलों को गठबंधन बनाकर जनता की शिकायतें दूर करने की दिशा में कदम उठाने पड़ेंगे अन्यथा उनकी कोई विश्वसनीयता नहीं रह जाएगी। युवाओं को रोजगार देते हुए देश को संपन्न बनाना नए नेतृत्व की प्राथमिकता होनी चाहिए। ओली सरकार अपनी अदूरदर्शिता का शिकार हुई। चीन के हाथों में खेल रहे नेतृत्व को युवाओं ने करारा सबक सिखा दिया लेकिन अब जल्दी से जल्दी शांति और सुव्यवस्था बहाल करनी होगी।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा