देश में 20 प्रतिशत से ज्यादा नकली दवाइयां (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: यह कटु सत्य है कि दवा बनाने के नियंत्रण में ढिलाई की वजह से आज भारतीय बाजार में बिकने वाले दवा उत्पादों में से 20 फीसदी से अधिक नकली हैं और लगभग इसी अनुपात में 5 फीसदी जेनेरिक दवाएं बेकार बताई जाती हैं।कफ सिरप कांड के बाद केवल एक राज्य की जांच में पैरासिटामोल, ओआरएस घोल, सामान्य आई-ड्रॉप्स और फेसवॉश जैसी सैकड़ों सामान्य उपयोग की दवाएं संदूषित या निकृष्ट पाई गई।कुछ वर्ष पहले भारत के तीन राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों से जांच के लिए इकट्ठा किए गए दवा नमूनों में से 7,500 से अधिक दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में फेल हो गई थीं।
हमारे पास अच्छी गुणवत्ता वाली सक्षम दवाएं निर्मित करने के सारे साधन, संसाधन, तकनीक और ज्ञान मौजूद हैं, लेकिन दवा निर्माता पचासों गुना मुनाफा कमाने के लिए उनमें मिलावट करते हैं, कभी-कभी इस हद तक कि दवा जहर बन जाती है।टीका बनाने के मामले में दुनिया का यह अग्रणी देश ‘फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड’ कहलाता है।देश में 3,000 से अधिक दवा कंपनियां और लगभग 13,000० दवा उत्पादन इकाइयां हैं।हम 190 से अधिक देशों को दवाएं निर्यात करते हैं।वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं की 20 फीसदी से अधिक आपूर्ति हम ही करते हैं और 2030 तक अपने दवा बाजार को 130 अरब डॉलर से अधिक का बनाने का लक्ष्य भी रखते हैं।
सरकार सक्रिय रूप से फार्मास्युटिकल अनुसंधान और विकास को बढ़ावा दे रही है,लेकिन यदि दवा कंपनियां इसी तरह दवा निर्माण के क्षेत्र में अपनी साख गिराती रहीं तो यह लक्ष्य कैसे संभव होगा? हमारी दवा नियंत्रण प्रणाली में गहरी खामियां हैं।यदि इन्हें समय रहते दुरुस्त नहीं किया गया तो कहीं भी अत्यंत दारुण स्थिति उत्पन्न हो सकती है।दवा सीधे सेहत और जीवन से जुड़ी भरोसे की चीज है।यदि इसकी विश्वसनीयता यूं ही गिरती रही तो यह आर्थिक ही नहीं, राजनीतिक तौर पर भी नुकसानदेह साबित होगी।केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के स्वास्थ्य सचिवों और ड्रग कंट्रोलर्स की आपात बैठक बुलाई- यह स्वागतयोग्य कदम है पर दीर्घकालिक सकारात्मक परिणाम तभी मिलेंगे जब दिशा-निर्देशों पर ईमानदारी से कार्रवाई भी हो।
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शीघ्र ही सरकार द्वारा दवा निर्माताओं, वितरकों और विक्रेताओं के काम को सुगम करने के लिए लाया गया जनविश्वास विधेयक राज्यसभा से पास होकर कानून की शक्ल ले सकता है।इसके तहत ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की धारा 27 (डी) में फेरबदल का प्रस्ताव है।यह संशोधन विदेशी निवेशकों के लिए दवा व्यापार में आसानी पैदा करेगा और आम जनता तक सस्ती दवाओं की उपलब्धता बढ़ाएगा।परंतु आम धारणा यह है कि इस संशोधन के बाद घटिया और गुणवत्ताहीन दवाओं का निर्माण और तेजी से बढ़ेगा।पहले से ही दवा निर्माण के नियंत्रण में चली आ रही लचर व्यवस्था को यह कानूनी बदलाव और दयनीय बना सकता है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा