मंदिर के समान ही न्याय मंदिर (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, हमारा सुझाव है कि जिस प्रकार लोग मंदिर में प्रवेश करने से पहले अपने जूते-चप्पल बाहर उतार देते हैं, वैसे ही न्यायमंदिर के प्रवेश द्वार पर भी करना चाहिए। अदालत के बाहर एक शू स्टैंड रहना चाहिए जहां लिखा रहना चाहिए- कृपया अपने जूते-चप्पल यहां रखें और न्याय मंदिर की पवित्रता बनाए रखें।’ हमने कहा, ‘आप यह अटपटा सुझाव क्यों दे रहे हैं? क्या जज, वकील, मुवक्किल, आरोपी, कोर्ट के रीडर, रजिस्ट्रार, क्लर्क अदालत में नंगे पैर जाएंगे? जब वकील गले में सफेद शर्ट के कॉलर पर नेकबैंड लगाएगा तो पैर में पॉलिश किया हुआ काला जूता भी पहनेगा। ड्रेस कोड क्या होता है, समझते हैं ना?’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, हमारे पास मजबूत तर्क या दलीलें हैं। आपने महान चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन या एमएफ हुसैन का नाम सुना होगा जिन्हें बेयरफूट आर्टिस्ट कहा जाता था। वह कभी जूता-चप्पल नहीं पहनते थे। उनकी पेंटिंग करोड़ों रुपए में बिकती थीं। उन्होंने ‘गजगामिनी’ नामक फिल्म बनाई थी जिसकी हीरोइन माधुरी दीक्षित थीं। महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर के इतवारी क्षेत्र में पं.गोविंदराम थानवी रहा करते थे जिन्होंने शपथ ली थी कि जब तक गोहत्या पर पूर्ण बंदी नहीं लगेगी वह जूता-चप्पल नहीं पहनेंगे। वह हमेशा नंगे पैर घूमते रहे।
भगवान राम भी जब वनवास जाने के लिए अयोध्या से निकले तो छोटे भाई भरत ने उनकी खडाऊं या चरणपादुका मांग ली। भगवान भी 14 वर्ष के वनवास में बेयरफूट ही रहे। आपको भी सुबह चप्पल या स्लीपर उतारकर हरी घास पर चहलकदमी करनी चाहिए। इससे प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है और आंखों की रोशनी बढ़ती है। आदिवासी क्षेत्रों में सेवा करनेवाले बेयरफुट डॉक्टरों के बारे में आपने सुना होगा।’
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हमने कहा, ‘आप इतनी बातें इसलिए कर रहे हैं ताकि लोअर कोर्ट से अपर कोर्ट तक कोई आरोपी या वकील न्यायासन पर चप्पल-जूता न फेंक पाए! जब बाहर ही उतार देगा तो फेंकेगा कैसे! वैसे तो इंटरनेशनल फ्लाइट में सवार होने से पहले चेक करने के लिए जूते उतारने को कहा जाता है। राष्ट्रपति रहते हुए जब एपीजे अब्दुल कलाम अमेरिका जा रहे थे तो एयरपोर्ट पर उनसे भी जूते उतरवाए गए थे।’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा