
सत्य का मोर्चा अब कौन सा रंग लाएगा (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: महाराष्ट्र की मतदाता सूची की धांधली के विरोध में महाविकास आघाड़ी व मनसे ने मुंबई में ‘सत्य का मोर्चा’ निकाला। विपक्ष का आरोप है कि मतदाता सूचियों में मतदाताओं के नामों की पुनरावृत्ति की गई है। एक ही वोटर का 2-3 जगह नाम है। एक ही निवास स्थान को दर्जनों मतदाताओं का पता बताया गया है। ऐसी कितनी ही आपत्तियां उठाने पर भी चुनाव आयोग कोई ध्यान नहीं देता। जब कार्यपालिका, विधानमंडल और न्यायपालिका के जरिए समस्या हल न हो तो सरकार के विरुद्ध शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना जनता का अधिकार है।
मोर्चे का यह कारण बताने के बावजूद क्या उसमें शामिल पार्टियां सचमुच एकजुट होकर सत्ताधारियों के खिलाफ चुनाव लड़ेंगी? ऐसा नहीं होगा क्योंकि मुंबई महापालिका चुनाव में शिवसेना (उद्धव) और मनसे का गठबंधन रहेगा। इससे कांग्रेस की बेचैनी बढ़ गई है। राज ठाकरे ने कहा कि जो मतदाता दोबारा मतदान केंद्र पर दिखाई दे, उसे पीटो और फिर पुलिस के हवाले करो। उन्होंने राज्य के 10 लोकसभा क्षेत्रों में 9,41,750 डुप्लीकेट वोटर होने का आरोप लगाया। शरद पवार ने मोर्चे को देखकर संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन का स्मरण किया। उन्होंने लोगों से मताधिकार व संसदीय लोकतंत्र कायम रखने की अपील की। कांग्रेस के बाला थोरात ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग झूठ बोलता है।
राष्ट्रीय स्तर पर दोषपूर्ण मतदाता सूचियों का मुद्दा राहुल गांधी ने उठाया है लेकिन मोर्चे में केवल थोरात व विजय वडेट्टीवार सहित एक-दो नेताओं की उपस्थिति ने दिखाया कि कांग्रेस में एकजुटता का अभाव है। कांग्रेस की महिला शहर अध्यक्ष वर्षा गायकवाड ने मोर्चे से दूरी बरती। वजह यह है कि दोनों ठाकरे बंधु एक साथ आ गए हैं। कांग्रेस को मनसे की आक्रामक भाषा पसंद नहीं है। मतदाता सूची में गड़बड़ी के खिलाफ यह लड़ाई कैसे आगे बढ़ाई जाए, इस पर विपक्षी नेताओं को मिलकर विचार करना होगा। जब मतदाता सूची को लेकर चुनाव आयोग से प्रश्न पूछा जा रहा है तो सत्य का मोर्चा के खिलाफ बीजेपी को मूक मोर्चा निकालने की क्या आवश्यकता थी? इतना अवश्य है कि सत्य का मोर्चा के जरिए महाआघाड़ी व मनसे का तालमेल लोगों ने देखा। इतने पर भी क्या ऐसा गठजोड़ स्थानीय निकाय चुनाव में बना रहेगा?
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2019 में उद्धव ठाकरे, कांग्रेस व अविभाजित राकांपा के साथ थे लेकिन तीनों पार्टियों के बीच कोई लिखित करार या समान कार्यक्रम नहीं था। उद्धव की बात अलग थी लेकिन आक्रामक तेवरवाले राज ठाकरे को साथ लेने से कांग्रेस और शरद पवार दोनों ही हिचकेंगे। राज ने तो हाल ही में यह भी कहा कि मतदाता सूची में सुधार हुए बिना चुनाव न कराए जाएं। वर्ष भर चुनाव नहीं होगा तो क्या फर्क पड़ेगा! उद्धव ठाकरे मतदाता सूची में धांधली के खिलाफ अदालत में जाने की बात कह रहे हैं। मतदाता सूची में गड़बड़ी का आरोप तो शिवसेना शिंदे व राकांपा अजीत गुट के नेताओं ने भी लगाया है। इतना सब होते हुए भी यदि चुनाव आयोग ने एक सप्ताह में चुनाव कार्यक्रम घोषित कर दिया तो ऐसी हालत में महाविकास आघाड़ी और मनसे की क्या भूमिका होगी।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






