
तालाब में मछली पकड़ते हुए राहुल गांधी (सोर्स- सोशल मीडिया)
Bihar Assembly Elections: कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बिहार की राजनीति में हालिया सक्रियता ने नई चर्चाओं को हवा दे दी है। बेगूसराय में मछली पकड़ने के लिए उनके तालाब में उतरने को सिर्फ़ एक प्रतीकात्मक इशारा नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश के तौर पर देखा जा रहा है।
मतदाता अधिकार यात्रा के बाद कांग्रेस पार्टी में नई जान फूंकने की कोशिश कर रहे राहुल गांधी ने रविवार को मछुआरों और निषाद समुदायों को लुभाने के लिए यह कदम उठाया। उनके साथ वीआईपी पार्टी के प्रमुख और खुद को “सन ऑफ मल्लाह” मुकेश सहनी भी मौजूद थे।
राहुल गांधी के इस कदम को कांग्रेस के लिए एक नए जनसंपर्क अभियान के तौर पर देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मछुआरा समुदाय तक पहुंचकर राहुल गांधी ने एक भावनात्मक जुड़ाव का संदेश देने की कोशिश की है। सामाजिक रूप से यह समुदाय लंबे समय से राजनीति में हाशिए पर रहा है। इसलिए राहुल गांधी के इस कदम को उन्हें सम्मान और पहचान देने के तौर पर देखा जा रहा है।
दूसरी तरफ भाजपा ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी नेताओं ने इसे “चुनावी ड्रामा” करार देते हुए कहा कि जिस तरह राहुल गांधी ने छठ पर्व के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घाटों पर जाने को “ड्रामा” कहा था, अब वे खुद भी वही कर रहे हैं। जबकि, कांग्रेस पार्टी का कहना है कि राहुल गांधी का जनसंपर्क अभियान जनता से उनके गहरे जुड़ाव का प्रमाण है।
पार्टी का मानना है कि अगर यह अभियान भावनात्मक लगाव को वोटों में बदलने में कामयाब रहा, तो इसका बिहार की 40 से 50 विधानसभा सीटों पर सीधा असर पड़ेगा। मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी पहले एनडीए का हिस्सा थी, लेकिन अब महागठबंधन के साथ है। राहुल गांधी के साथ मंच साझा करने से सहनी निषाद और मल्लाह समुदायों को संकेत देते हैं कि सत्ता में उनका प्रतिनिधित्व होगा।
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रिपोर्ट्स के मुताबिक, बेगूसराय, मुजफ्फरपुर, खगड़िया, सहरसा और दरभंगा जैसे जिलों में निषाद समुदाय निर्णायक भूमिका निभाता है। अगर यहां के मतदाता कांग्रेस और महागठबंधन की ओर झुकते हैं, तो इसका चुनाव परिणामों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मतदाता इसे महज़ चुनावी हथकंडा या अस्थायी दिखावा समझते हैं, तो यह कदम उल्टा पड़ सकता है। बिहार की जनता अब सिर्फ़ प्रतीकों से आगे बढ़कर ठोस विकास और रोज़गार की उम्मीद कर रही है। देखना यह है कि क्या राहुल गांधी की “राजनीतिक छलांग” महागठबंधन को सचमुच जीत दिला पाएगी या सिर्फ़ एक और चुनावी हथकंडा बनकर रह जाएगी।






