(डिजाइन फोटो)
पिछले कुछ माह के दौरान भारत और चीन के बीच अनेक राजनयिक वार्ताएं हुई हैं, जिनसे यह संभावना बढ़ी है कि पूर्वी लद्दाख में जो सैन्य टकराव की स्थिति बनी हुई है, उसे कम करने का कोई रास्ता निकल सकता है। रक्षा सूत्रों का कहना है कि जमीनी स्तर पर पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के साथ विश्वास का अभाव गहरा है और वह बढ़ता ही जा रहा है।
इसलिए यह आश्चर्य नहीं है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत लगातार पांचवें शीतकाल में भरपूर फौज की तैनाती की तैयारियों में जुटा है। पूर्वी लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम की कठिन सरहद में हमारी सेना मोर्चाबंदी के लिए पूरी क्षमता से तैयारी कर रही है। सेंट पीटर्सबर्ग में ब्रिक्स सम्मेलन की साइडलाइन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच बैठक हुई।
जिस तरह से चीन अपनी अग्रिम सैन्य पोजीशन को मजबूत करता जा रहा है और 3,488 किमी लम्बी एलएसी पर स्थायी रक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर बनाता जा रहा है, उससे एकदम स्पष्ट है कि पीएलए शांति के समय की लोकेशन पर नहीं लौटेगी। भारतीय सेना भी जाड़ों के लिए विशाल बंदोबस्त कर रही है और सीमा पर आगे की तरफ़ अतिरिक्त फ़ौज तैनात कर रही है।
गंगटोक (सिक्किम) में 9-10 अक्टूबर को होने वाली बैठक में जनरल उपेन्द्र द्विवेदी और सेना की सातवीं कमांड के कमांडर्स-इन-चीफ स्थिति की समीक्षा करेंगे। कोर कमांडरों की बैठकों में गतिरोध मुख्यत: इस वजह से बना हुआ है कि चीन टकराव के दो मुख्य स्थलों के संदर्भ में भारत के सही दावों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। एक है देपसांग मैदान जोकि भारत के जम्मू कश्मीर के पूर्वी भाग में लद्दाख क्षेत्र और चीन-अधिकृत अक्साई चिन क्षेत्र की सीमा पर स्थित एक ऊंचा मैदानी इलाका है। दूसरा है देमचोक के निकट चार्डिंग निंगलंग नाला ट्रैक जंक्शन।
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अगर डेपसांग व डेमचोक पर डिसइंगेजमेंट (फौजों का पीछे हटकर इलाके को खाली कर देना) हो भी जाता है तो भी यह टकराव को कम करने के सिलसिले में पहला ही कदम होगा। इसके बाद जब तक फौजों के बीच डी-एस्कॉलेशन (तनाव की स्थिति को कम करना या युद्ध की स्थिति को टालना) नहीं होता है, इसका अर्थ है कि जब तक युद्ध की आशंका पर विराम नहीं लगेगा, तब तक खतरा है।
बीजेपी नेता सुब्रह्मणियम स्वामी के अनुसार चीन ने भारत की 4064 वर्ग किमी भूमि पर कब्जा किया हुआ है। केंद्र सरकार का कहना है कि भारत की एक इंच जमीन भी चीन ने नहीं कब्जाई है। स्वामी ने यह जानने के लिए कि भारत की कितनी भूमि चीन के कब्जे में है, गृह मंत्रालय से नवम्बर 2022 में आरटीआई के जरिये जवाब मांगा था।
जवाब न मिलने पर स्वामी ने 9 अक्टूबर 2023 को इस संदर्भ में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। भारत और चीन के बीच 5 मई 2020 से हालात खराब चल रहे हैं, जब पूर्वी लद्दाख में 45 वर्षों में पहली बार) हाथापाई में दोनों तरफ के सैनिक मारे गये। थे। भारत के 20 सैनिक शहीद हुए थे। चीन ने मारे गये अपने सैनिकों की संख्या कभी जाहिर नहीं की, लेकिन अखबारी रिपोर्टों में 40 से अधिक बतायी गई है।
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गलवान घाटी, पांगोंग त्सो-कैलाश रेंज और गोगरा हॉट् प्रिरंग्स में सितम्बर 2022 तक जो सैनिकों के डिसइंगेजमेंट के बाद बफर जोन बनाये गये थे और डेपसांग व डेमचोक में जो टकराव हुआ था, उसका अर्थ यह है कि भारतीय सेना अपने 65 पेट्रोलिंग पॉइंट्स में से 28 तक नहीं जा सकती, जोकि उत्तर में काराकोरम पास से शुरू होकर पूर्वी लद्दाख में चुमार तक जाते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को सावधान रहना चाहिए ताकि वह चीन के जाल में फंसा रहने से बचा रहे। इस बीच भारतीय सेना उच्चस्तरीय ऑपरेशनल तैयारी में लगी हुई है। पर्याप्त रिजर्व बल के साथ ही फौज को रि-एडजस्ट किया जा रहा है और एलएसी के हर सेक्शन पर लोजिस्टिक्स पर भी फोकस किया जा रहा है ताकि किसी भी आपात स्थिति का जमकर मुकाबला किया जा सके।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा