अनुशासन लागू करने और भेदभाव मिटाने के लिहाज से छात्रों के लिए यूनिफार्म की अनिवार्यता हो सकती है लेकिन शिक्षकों पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं रही। वैसे 50-60 वर्ष पहले महाराष्ट्र के शिक्षक कोट, धोती, टोपी पहने नजर आते थे। उनकी वेशभूषा ऐसी रहती थी कि विद्यार्थी उन्हें आदर से देखें। पीटी करानेवाले या एनसीसी के इंचार्ज टीचर पैंट-शर्ट पहनते थे। महिला शिक्षक सादी साड़ी पहनकर स्कूल आती थीं। समय के बदलाव और फैशन के चलते अब शिक्षक भी मनपसंद कपड़े पहनने लगे हैं।
इसे देखते हुए महाराष्ट्र के शिक्षामंत्री दीपक केसरकर ने शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड लागू किया है। इसके मुताबिक पुरुष शिक्षकों को हल्के रंग का शर्ट और गाढ़े रंग का ट्राउजर पैंट पहनना होगा। शर्ट को पैंट में खोंसना (इन करना) होगा। शिक्षक जीन्स और टीशर्ट नहीं पहन सकेंगे। ग्राफिक डिजाइन और पेंटिंग वाला कपड़ा भी नहीं चलेगा।
महिला शिक्षकों को सलवार, कुर्ता और दुपट्टा पहनना होगा। सर्कुलर के अनुसार शिक्षकों का पहनावा उनके पद के अनुरूप रहना चाहिए। राज्य में पहले से कुछ स्कूल ऐसी हैं जहां शिक्षकों के लिए सादी पोशाक वाला ड्रेस कोड़ चला आ रहा है। संभवत: सरकार मानती है कि शिक्षकों का फैशनेबल कपड़े पहनना छात्रों पर बुरा असर डालता है और इससे अनुशासन बिगड़ता है। दूसरी ओर महाराष्ट्र राज्य शिक्षक परिषद के अध्यक्ष शिवनाथ दराडे ने सर्कुलर का विरोध करते हुए कहा कि शिक्षकों पर ड्रेस कोड नहीं थोपा जाना चाहिए।
वैश्वीकरण के इस युग में शिक्षकों पर किसी विशिष्ट ड्रेस कोड, रंग आदि जबरदस्ती नहीं लादे जा सकते। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन है। किसी शिक्षिका को स्कूल की छुट्टी के बाद सीधे किसी कार्यक्रम या समारोह में जाना है तो क्या वह अपना मनपसंद परिधान नहीं पहन सकेगी? चाहे जो भी हो, युवा शिक्षकों को ड्रेस कोड अपनाने के लिए राजी करना कठिन जाएगा।