सर्वपल्ली राधाकृष्णन के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी(फोटो- सोशल मीडिया)
Birth Anniversary Special Sarvepalli Radhakrishnan: 5 सितंबर का दिन वैसे तो हर भारतीय के लिए खास है, लेकिन छात्रों के लिए बेहद स्पेशल है। क्योंकि आज ही के दिन 1888 में भारत के पहले उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता था। डॉ. सर्वपल्ली भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन के विचार आज भी छात्रों एंव शिक्षकों को प्रेरणा देते हैं। वह कभी भी समय में खुद को नहीं बांधते थे। उदाहरण स्वारूप अगर डॉ सर्वपल्ली किसी दिन क्लास में 20 मिनट आए तो ऐसा नहीं की वह 20 मिनट ज्यादा रुकेंगे, बल्कि वो 10 मिनट पहले क्लास से निकल जाते थे। उनका कहना था कि जो मुझे छात्रों को पढ़ाना था उसके लिए 20 मिनट की काफी हैं। कम समय देने के बाद भी वह छात्रों के प्रिय थे।
यूं तो दुनिया 5 अक्टूबर को ‘विश्व शिक्षक दिवस’ मनाती है, जबकि भारत में 5 सितंबर की तारीख शिक्षकों को समर्पित है। देशभर में बड़े ही उत्साह से इस दिन को ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। शिक्षकों की श्रेष्ठता और समर्पण को मान्यता देने की शुरुआत 1958 में हो चुकी थी, लेकिन एक निश्चित तारीख तय नहीं थी। कुछ साल बाद, जब 1960 के दशक के मध्य में 5 सितंबर को भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन का मौका आया, इस समारोह की तिथि निश्चित की गई।
इंदिरा गांधी, सर्वपल्ली राधा कृष्णन, जवाहर लाल नेहरू
समाचार और तमाम लेखों में जिक्र मिलता है कि जब भारत के पहले उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का 5 सितंबर को जन्मदिन था, तब कुछ छात्र उनसे मिलने गए थे। छात्र उनका जन्मदिन मनाना चाहते थे और उन्होंने यह इच्छा सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सामने रखी। इस पर सर्वपल्ली राधाकृष्णन कुछ समय शांत रहे। फिर छात्रों से कहा, “मुझे खुशी होगी अगर मेरे जन्मदिन की जगह शिक्षक दिवस मनाया जाए।”
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन से आजादी के बाद आग्रह किया गया कि वह मातृभूमि की सेवा के लिये विशिष्ट राजदूत के रूप में सोवियत संघ के साथ राजनयिक कार्यों की पूर्ति करें। इस प्रकार विजयलक्ष्मी पंडित का इन्हें नया उत्तराधिकारी चुना गया। पण्डित नेहरू के इस चयन पर कई व्यक्तियों ने आश्चर्य व्यक्त किया कि एक दर्शनशास्त्री को राजनयिक सेवाओं के लिए क्यों चुना गया? उन्हें यह सन्देह था कि डॉक्टर राधाकृष्णन की योग्यताएं सौंपी गई ज़िम्मेदारी के अनुकूल नहीं हैं। लेकिन बाद में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने यह साबित कर दिया कि मॉस्को में नियुक्त भारतीय राजनयिकों में वे सबसे बेहतर थे।
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1952 में सोवियत संघ से आने के बाद डॉक्टर राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति निर्वाचित किये गये। संविधान के अंतर्गत उपराष्ट्रपति का नया पद सृजित किया गया था। जवाहर लाल नेहरू ने इस पद हेतु राधाकृष्णन का चयन करके पुनः लोगों को चौका दिया। लोगों को आश्चर्य हुआ कि इस पद के लिए कांग्रेस पार्टी ने किसी राजनीतिक व्यक्ति का चुनाव क्यों नहीं किया।
उपराष्ट्रपति के रूप में राधाकृष्णन ने राज्यसभा में अध्यक्ष का पदभार भी सम्भाला। सन 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाये गये। बाद में पण्डित नेहरू का यह चयन भी सार्थक सिद्ध हुआ, क्योंकि उपराष्ट्रपति के रूप में एक गैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति ने सभी राजनीतिज्ञों को प्रभावित किया। संसद के सभी सदस्यों ने उन्हें उनके कार्य व्यवहार के लिये काफ़ी सराहा।