अजीत पवार की चाचा शरद पवार से चर्चा (सौ. सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, तलवार से काटने पर पानी अलग नहीं होता. खून, खून को पुकारता है. आपने फिल्मी गीत सुने होंगे- अकेले हैं चले आओ जहां हो, कहां आवाज दें तुमको कहां हो! पास आओ कि जी नहीं लगता, मुस्कुराओ कि जी नहीं लगता.’
हमने कहा, ‘हम समझ गए कि आपका इशारा पुणे में शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार के बीच ढाई घंटे तक अकेले में हुई चर्चा को लेकर है. जिनका परिवार है, वे आपस में पारिवारिक कार्यक्रमों में मिलेंगे ही! जिनका परिवार नहीं है उनकी बात अलग है. अजीत पवार अपने बुजुर्ग अंकल से मिले तो गलत क्या है! पिछले कुछ दिनों में यह तीसरी मुलाकात है.’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, आपने यह गीत भी सुना होगा- ये दुनियावाले पूछेंगे क्या बात हुई मुलाकात हुई, ये बात किसी से ना कहना! इसके बावजूद पत्रकारों ने जब उत्सुकतावश पूछा तो अजीत पवार ने बताया कि हमने कृषि उत्पादन बढ़ाने और रासायनिक खाद का इस्तेमाल घटाने की एआई तकनीक पर चर्चा की।मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने पर भी बात हुई.’
हमने कहा, ‘तब तो इस कृषि चर्चा के बैकग्राउंड में धीमे सुर में स्व. मनोजकुमार की फिल्म ‘उपकार’ का गीत बजना चाहिए था- मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज इन दोनों नेताओं को महाराष्ट्र की धरती से मतलब है. राजनीति की खेती-किसानी में वोटों की फसल काटी जाती है. कहते हैं कि चाचा-भतीजे में हो गया मेल, दोनों मिलकर करेंगे खेल! मुद्दा यह है कि जब इतनी मेल-मुलाकात करनी थी तो अलग ही क्यों हुए?’
हमने कहा, ‘नेताओं को भूत से भी ज्यादा ईडी का डर लगता है. जब डर सताए और रहा ना जाए तो बीजेपी की वाशिंग मशीन के करीब जाओ और बेदाग हो जाओ. राजनीति में युक्ति से काम करने पर ही शक्ति हासिल होती है. जिसमें राजनीतिक सुविधा हो, वह काम करना पड़ता है. पार्टीशन पार्टियों का है, रिश्तों या दिलों का नहीं. चाचा की सलाह का बेहतर होगा नतीजा, कुछ न कुछ लाभ उठाएगा भतीजा!’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा