सीडीएस चौहान ने दावे को गलत किया करार (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: हर युद्ध में नुकसान होता ही है। किसी का कम तो किसी का ज्यादा ! सूझबूझ इसी में है कि एक बार क्षति का अनुभव होते ही सही रणनीति अपनाकर आगे के नुकसान को टाला जाए। भारत ने यही किया। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने 3 सप्ताह बाद पहली बार संकेत दिया कि मई माह की शुरूआत में पाकिस्तान के साथ 4 दिनों तक चले सैन्य टकराव में भारत ने अपने लड़ाकू विमान खोए। 7 मई को और शुरूआती चरणों में नुकसान हुआ था लेकिन संख्याएं महत्वपूर्ण नहीं हैं। महत्वपूर्ण यह था कि ये नुकसान क्यों हुए और उसके बाद हम क्या करेंगे।
सीडीएस चौहान ने पाकिस्तान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के इस दावे को बिल्कुल गलत करार दिया कि पाकिस्तान ने 4 राफेल सहित 6 भारतीय विमानों को मार गिराया। उन्होंने कहा कि अच्छी बात यह है कि हम अपनी सामरिक गलती को समझने, अपनी रणनीति को सुधारने और 2 दिन बाद उसे लागू करने में सक्षम रहे। हमने अपने सभी जेट विमानों को उड़ाया और लंबी दूरी पर निशाना लगाया गया। भारत ने 300 किलोमीटर की गहराई तक सफलतापूर्वक सटीक हमले किए। चीन से आयात की गई पाकिस्तानी रक्षा प्रणाली काम नहीं आई। सिंगापुर में शांग्रीला संवाद के दौरान संवाद एजेंसी रायटर व ब्लूमबर्ग को साक्षात्कार देते हुए सीडीएस जनरल चौहान ने गिराए गए विमानों की संख्या या विवरण नहीं बताया लेकिन यह जरूर कहा कि संघर्ष के समय भारतीय वायुसेना ने अपने पास मौजूद सभी प्रकार के विमानों का इस्तेमाल किया।
उल्लेखनीय है कि दोनों ओर से संघर्ष विराम हो जाने के 1 दिन बाद 11 मई को डायरेक्टर ऑफ एयर आपरेशन्स एयर मार्शल एके भारती ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा था कि वह इस बात पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे कि क्या भारत ने कोई विमान खो दिया। उन्होंने कहा था कि किसी भी लड़ाई में नुकसान होता ही है लेकिन भारतीय सेना ने अपने सभी उद्देश्य हासिल कर लिए और भारतीय वायुसेना के सभी पायलट सुरक्षित लौट आए। भारतीय सशस्त्र बलों के सटीक हमले से पाकिस्तान के एयरबेसों व संसाधनों को भारी क्षति पहुंची और उसके कुछ विमान भी नष्ट हुए। सीडीएस चौहान ने कहा कि यद्यपि पाकिस्तान के चीन से निकट संबंध हैं लेकिन फिर भी इस संघर्ष में चीन की ओर से पाकिस्तान को मदद का कोई संकेत नहीं मिला।
सीडीएस ने नपे-तुले शब्दों में सही-सही बात कही। राजनेताओं की बात अलग है जो किसी अभियान का श्रेय लेना चाहते हैं और राजनीतिक लाभ पर भी उनकी नजर रहती है। जो कमांडर वास्तव में युद्ध का मोर्चा संभालता है वह जानता है कि कितना लाभ और कितना नुकसान हुआ। कहां चूक हुई और फिर उसे कैसे सुधार कर बाद में दुश्मन के दांत खट्टे किए गए। आपरेशन सिंदूर एक उल्लेखनीय मुहिम थी। जब संघर्ष विराम हो तो ऐसी स्थिति में लोकतंत्र का तकाजा है कि इस बारे में सांसदों को पूरी जानकारी देने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए। विपक्ष की इस मांग का औचित्य है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा