नवभारत निशानेबाज (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, उर्दू भाषा में कितनी सलासत, नफासत और उम्दगी है। उसका अंदाज-ए-बयां ही कुछ और है।’ हमने कहा, ‘यही बात आप हिंदी में बोल सकते थे कि भाषा में कितनी मधुरता, सौष्ठव और अच्छाई है। उसकी वर्णन शैली कितनी सुंदर है। जब हिंदी आती है तो उर्दू शब्दों का उपयोग क्यों करते हैं?’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, उर्दू का इस्तेमाल हम नहीं, बल्कि मोदी सरकार बड़े ही बेसाख्ता अंदाज में कर रही है। उसने बिहार के मुस्लिमों को सौगात-ए-मोदी के नाम से तोहफा दिया है। उसमें खाने-पीने की जरूरी चीजें और महिला के सलवार-सूट का कपड़ा है। जो मुल्क के वजीर-ए-आजम के मार्फत मुहैया कराया गया है।
आपको सौगात-ए-मोदी से मुगल-ए-आजम की याद आ गई होगी। आप भी उड़द की दाल खाइए और उर्दू बोलिए। उर्दू की शायरी सुनिए। साहिर लुधियानवी, मजरूह सुलतानपुरी के लिखे फिल्मी गीतों का मजा लीजिए। दीवान-ए-गालिब पढि़ए।’
हमने कहा, ‘भाषा विवाद को आगे मत बढ़ाइए। सौगात-ए-मोदी का अर्थ है मोदी की ओर से सप्रेम भेंट या उपहार! उर्दू अल्फाजों की बजाय हिंदी शब्द बोलिए पानी को जल, दलील को तर्क, मश्वरा को परामर्श, अश्क को आंसू, रहम को दया, जुल्म को अत्याचार, जुल्फ की बजाय बालों की लट, दास्तान को कहानी, सलीका की जगह शिष्टाचार, गुनाह को अपराध, वतन को देश, सूबे को प्रांत, सुबह को प्रात:काल, शाम को संध्या, उजाला को प्रकाश, दौलत को संपत्ति, दिल को मन या हृदय, दिमाग को मस्तिष्क, जिगर को यकृत, बेखौफ को निडर, जायकेदार खाने को स्वादिष्ट भोजन, निवाला को कौर, रास्ते को मार्ग, खून को रक्त, दवाई को औषधि, कातिल को हत्यारा, मरहूम को स्वर्गीय, खोजबीन को अन्वेषण कहिए।’
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पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज तब तो हमें जरूरत को आवश्यकता, तकलीफ को कष्ट, हमदर्दी जताने को सांत्वना देना कहना पड़ेगा। अब हम शुक्रिया की बजाय धन्यवाद कहने की आदत डालेंगे। उर्दू अल्फाज का इस्तेमाल न कर हिंदी शब्दों का उपयोग करेंगे।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा