प्रतिकात्मक तस्वीर (सौजन्य सोशल मीडिया)
गणेशोत्सव का महापर्व ‘गणेश चतुर्थी’ (Ganesh Chaturthi) हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन देशभर में मनाया जाता है जो कि पूरे 10 दिनों तक चलता है। इस दौरान लोग अपने घरों में धूमधाम से गणपति बप्पा का स्वागत करते हैं और उनकी स्थापना करते हैं। इस दौरान घर में ऐसे गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है जिसमें उनके साथ उनकी सवारी मूषक, यानि चूहा भी मौजूद होता है।
ऐसे में क्या कभी आपके दिमाग में यह ख्याल आया है कि गणेश जी की सवारी मूषक यानि चूहा ही क्यों है? तो आइए जान लेते है इससे जुड़ी रोचक कथा –
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा इन्द्र के दरबार में क्रौंच नामक गंधर्व था। एक बार इंद्र की सभा में क्रौंच अप्सराओं से हंसी-ठिठोली करने में व्यस्त था। इंद्र का ध्यान उस पर गया तो नाराज इंद्र ने उसे चूहा बन जाने का श्राप दे दिया। स्वभाव से चंचल क्रौंच एक बलवान मूषक के रूप में सीधे पराशर ऋषि के आश्रम में जा गिरा। वहां जाते ही उसने भयंकर उत्पात मचा दिया। उसने आश्रम के सारे मिट्टी के पात्र तोड़ डाले, सारा अन्न खा लिया, वाटिका भी उजाड़ डाली तथा ऋषियों के सारे वस्त्र और ग्रंथ कुतर डाले।
यह सब देखकर पराशर ऋषि बहुत दुखी हो गए और सोचने लगे अब इस चूहे के आतंक से कैसे बचा जाए। समस्या समाधान के लिए पराशर ऋषि गणेश जी की शरण में गए। तब गणेश जी ने पराशर जी को कहा कि मैं अभी इस मूषक को अपना वाहन बना लेता हूं। यह कहकर गणेश जी ने अपना तेजस्वी पाश फेंका, जो मूषक का पीछा करता हुआ पाताल तक गया और उसका कंठ बांध लिया और उसे घसीट कर बाहर निकाल गजानन के सम्मुख उपस्थित कर दिया।
पाश की पकड़ से मूषक मूर्छित हो गया। मूर्छा खुलते ही मूषक ने गणेश जी की आराधना शुरू कर दी और अपने प्राणों की भीख मांगने लगा। गणेश जी मूषक की स्तुति से प्रसन्न तो हुए लेकिन उससे कहा कि तूने ब्राह्मणों को बहुत कष्ट दिया है और मैंने दुष्टों के नाश एवं साधु पुरुषों के कल्याण के लिए ही अवतार लिया है। लेकिन शरणागत की रक्षा भी मेरा परम धर्म है, इसलिए जो वरदान चाहो मांग लो।
ऐसा सुनकर उस उत्पाती मूषक का अहंकार जाग उठा और वह बोला, मुझे आपसे कुछ नहीं मांगना है, आप चाहें तो मुझसे वर की याचना कर सकते हैं। मूषक की गर्व भरी वाणी सुनकर गणेश जी मन ही मन मुस्काए और कहा, ‘यदि तेरा वचन सत्य है तो तू मेरा वाहन बन जा। मूषक के तथास्तु कहते ही गणेश जी तुरंत उस पर आरूढ़ हो गए। अब भारी भरकम गजानन के भार से दबकर मूषक के प्राण संकट में पड़ गए। तब उसने गजानन से प्रार्थना की कि वे अपना भार उसके वहन करने योग्य बना लें। इस तरह मूषक का गर्व चूर कर गणेश जी ने उसे अपना वाहन बना लिया।
लेखिका- सीमा कुमारी