नवरात्र 2025 घटस्थापना की सामग्री पूरी लिस्ट (सौ.सोशल मीडिया)
Shardiya Navratri Ghatasthapana Samagri: जगत जननी मां दुर्गा की कृपा प्राप्ति के लिए शारदीय नवरात्र का महापर्व शुभ माना जाता है। हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्रि का पवित्र और खास पर्व मनाया जाता है। इस बार विशेष बात यह है कि नवरात्रि 10 दिनों तक मनाया जाएगा।
क्योंकि 24 और 25 सितंबर दोनों दिन तृतीया तिथि बनने के कारण पर्व सामान्य 9 दिनों की बजाय 10 दिन चलेगा। इसे शुभ माना जाता है, क्योंकि पर्व की तिथि बढ़ने से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं।
जैसा कि आप जानते हैं कि, शारदीय नवरात्र के दिन पहले दिन कलश स्थापना कर मां दुर्गा की उपासना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि कलश स्थापना में विशेष चीजों को शामिल करने से साधक को पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है और मां दुर्गा जीवन के सभी दुखों को दूर करती हैं। ऐसे में चलिए इस खबर जानते हैं कि कलश स्थापना की पूजा सामग्री लिस्ट और मुहूर्त के बारे में।
आपको बता दें, पंचांग के अनुसार, शारदीय नवरात्र 22 सितंबर से शुरू हो रहे हैं। इस दिन दो शुभ मुहूर्त हैं। सुबह 6 बजकर 09 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 06 मिनट है। दूसरा मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त में 11 बजकर 49 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक है। इन दोनों में से किसी भी मुहूर्त घटस्थापना कर सकते हैं।
अनाज, साफ जवा
कलश
गंगाजल
सुपारी, मौली, रोली
जटा वाला नारियल
आम या अशोक के पत्ते
मिट्टी का बर्तन
किसी पवित्र स्थान की मिट्टी (मंदिर आदि)
अखंड ज्योति के लिए बड़ा दीया, रुई की बाती
लाल सूत्र, सिक्का
लाल कपड़ा
फूल, फूल माला
इलायची, लौंग, कपूर
अक्षत, हल्दी
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, इस दिन सुबह स्नान करने के बाद सबसे पहले सूर्य देव को अर्घ्य दें। इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करें।
बता दें, कलश स्थापना के लिए घर की उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा को शुभ माना जाता है। कलश में साफ जल भरकर उसमें सिक्का, फूल और अक्षत डालें।
इसके बाद कलश पर स्वास्तिक बनाएं और कलावा लपेट दें। लाल चुनरी में नारियल को लपेट कर कलश के ऊपर रख दें।
देसी घी का दीपक जलाकर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करें। व्रत कथा का पाठ करें। फल और मिठाई का भोग लगाएं।
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ॐ ह्रींग डुंग दुर्गायै नमः
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।