तेलाई माता मंदिर (फोटो नवभारत)
Telai Mata Temple In Wardha: वर्धा जिले के आष्टी तहसील में आस्था के कई जगहें है। इन आस्था की जगहों में तेलाई माता का इतिहास विशेष मायने रखता है। घने जंगल में बसी तेलाई माता का मंदिर आष्टी-वरूड इस राष्ट्रीय महामार्ग को सटकर पांढुर्णा गांव के करीब घाट खत्म होते ही एक तरफ किन्ही गांव की सड़क और दूसरी ओर पांढुर्णा गांव की सड़क जाती है। इन तीनों सड़कों के ज्वाइंट पर स्थित तेलाई माता का मंदिर निर्माण हुआ है। तेलाई माता मंदिर नवरात्री के पावन अवसर पर यहां नवरात्र पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
वैसे तो लोग सालभर दर्शन करने तेलाई माता मंदिर में आते जाते रहते है। लेकिन नवरात्रि पर्व में भक्तों की संख्या में दिन-ब-दिन बढोत्तरी होते दिखाई दे रही है। फिलहाल भक्तों को तेलाई माता दर्शन के लिए लाइन लगानी पड़ती है। भक्तों की यहां पर मनोकामना पूरी होती है। ऐसा माना जाता है।
यहां पर दर्शन के लिए भक्त लोग सुबह तडसे से आना शुरू हो जाता है। कई साल पहले यहां पर खुली जगह में राष्ट्रीय महामार्ग को (आष्टी–वरूड सड़क) सटकर एक मूर्ति थी। अब वहां पर एक विशाल मंदिर बना है। मंदिर में दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते है।
मान्यता है कि कई साल पहले एक तेल का व्यापारी इस जगह पर खाना खाने के लिए रूका था। उसने तेल का डिब्बा बाजू में रखा था। तेल का डिब्बा फूटा और उसमें का तेल पूरा वही पर खाली हो गया। व्यापारी खाना खाने के बाद तेल के डिब्बे की तरफ देखता है। डिब्बे का तेल खाली है। वह वहां से चला गया। फैले हुए तेल के आसपास बेर के पेड़ के नीचे एक प्रतिबिंब तैयार हो गया। उसमें से एक तेलाई देवी की मूर्ति विराजमान हुई।
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थोड़े ही दिनों के बाद उस जगह पर एक छोटासा मंदिर निर्माण किया गया। आबाद किन्ही गांव जाने वाली सड़क का निर्माण करते समय डामरीकरण करने वाले ठेकेदार डी के कन्स्ट्रक्शन कंपनी के मालिक दिलीप कटारिया ने 2001 में एक बड़ा मंदिर बनाया था। भक्तों ने यहां धीरे-धीरे दान देना शुरू किया। आज तेलाई माता मंदिर स्थित है। यहां मनोकामना पूरी होने की मान्यता है।
आष्टी के नए बस स्टैंड से निकलने पर 2 किमी से एक घाट शुरू होता है। वहां से ही मंदिर का कलश दिखना शुरू होता है। घाट खत्म होते ही उपर में यह मंदिर स्थित है। नवरात्रि में तेलाई मंदिर में भक्तों का तांता लगा दिखाई देता है। पहले तेलाई माता मंदिर में चित्रकूट निवासी पूजारी बाबुलाल मिश्रा काम संभालते थे़ उनका तीन माह पहले देहांत हो गया। पूजारी मिश्रा को माता ने प्रत्यक्ष दर्शन दिए है।
पहली बार 7 वर्ष की कन्या दूसरी बार 16 वर्ष की कन्या के रूप में दर्शन हुए। तीसरी बार 70 साल की मां के रूप में दर्शन हुए, ऐसा कहा जाता है़ उनके बाद एक महिला ने कुछ दिन मंदिर की देखभाल की़ उ सके बाद से अब भूपेंद्र शुक्ला बतौर पूजारी काम संभाल रहे है।