
प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स: सोशल मीडिया)
Thane 2016 Robbery Case: ठाणे की एक अदालत ने 2016 में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत दर्ज डकैती मामले में नौ आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में विफल रहा और मकोका की धारा 2(1)(ई) में परिभाषित अपराध आरोपियों के खिलाफ साबित नहीं हुआ।
विशेष न्यायाधीश (मकोका मामले) वी.जी. मोहिते ने 12 दिसंबर को अपने आदेश में स्पष्ट किया कि केवल पिछले आरोपपत्र की प्रतियां एकत्र करना और अधिनियम की धारा 23(2) के तहत स्वीकृति आदेश का हवाला देना मकोका की धारा 3 के तहत अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
अभियोजन ने आरोप लगाया था कि 18 जुलाई 2016 को आरोपियों ने पालघर जिले के तलासरी में एक परिवार को धमकाया, उन्हें बंधक बनाया और उनके घर से नकदी और आभूषण लूट लिए। आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 395 (डकैती), 397 (डकैती या चोरी के दौरान हत्या या गंभीर चोट का प्रयास), 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र) के साथ-साथ मकोका की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।
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अदालत ने अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूतों को अविश्वसनीय और कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण पाया। विशेष रूप से आरोपियों की पहचान और लूटी गई संपत्ति की बरामदगी को अदालत ने पर्याप्त ठोस प्रमाण नहीं माना। न्यायाधीश मोहिते ने कहा कि आरोपों को साबित करने के लिए कड़े और विश्वसनीय सबूत होना आवश्यक है, जिसे इस मामले में अभियोजन प्रस्तुत नहीं कर पाया।
इस आदेश के बाद नौ आरोपियों को मकोका के तहत दर्ज गंभीर मामले से राहत मिली है। अदालत का यह निर्णय महाराष्ट्र में मकोका के तहत दर्ज मामलों में सबूत की वैधता और अभियोजन की जिम्मेदारी पर महत्वपूर्ण precedents पेश करता है।






