
जांच करने के लिए पहुंची मेडिकल टीम (सोर्स: सोशल मीडिया)
Thane Gastro Outbreak: ठाणे जिले के शहापुर तालुका अंतर्गत कसारा के नजदीक दुर्गम आदिवासी क्षेत्र फणसपाड़ा में दूषित पानी की वजह से गांव के लोग गैस्ट्रो के शिकार हो गए। उल्टी जुलाब से पीड़ित ग्रामीणों को अस्पताल मे दाखिल कराया गया है। इस मामले में एक 4 साल की बच्ची की मौत हो गयी। जबकि 2 की हालत खराब बताई गयी है। गैस्ट्रो से पीड़ित 30 लोगों का विभिन्न स्थानों पर इलाज चल रहा है।
बताया गया कि कसारा के नजदीक फणसपाड़ा (शिरोल) के 30 से अधिक लोग पिछले 2 दिनों से उल्टी-दस्त से पीड़ित हैं। इसमें से कुछ ग्रामीणों का इलाज एक निजी अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कसारा और खर्डी ग्रामीण अस्पताल में चल रहा है। इलाज के दौरान चार साल की बच्ची वेदिका भस्मा की मौत हो गई।
गैस्ट्रो और अन्य बीमारियों से पीड़ित 2 अन्य लोगों को इलाज के लिए शहापुर स्थित उप जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। बताया गया कि गांव के 6 से अधिक मरीजों खर्डी के एक अस्पताल में और 20 से अधिक मरीज चिकित्सा शिविर फणसपाड़ा में इलाज करा रहे हैं।
बताया गया कि फणसपाड़ा में स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति का कार्य किया जाना है। लेकिन योजना का काम अभी तक पूरा नहीं होने से ग्रामीणों को कुएं के पानी पर निर्भर रहना पड़ता है। बारिश, अस्वच्छता और नीचे की ओर बहने वाले नाले के पानी के कारण कुएं का पानी दूषित हो गया है।
दूषित पानी की वजह से गैस्ट्रो की बीमारी फैली। इस गांव के लोगों के पास कुएं के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है, इसलिए कुएं के पानी का उपयोग खाने, नहाने और पीने के लिए किया जा रहा है। बताया गया कि तालाब से जल योजना के नल से 5 दिनों के बाद अशुद्ध पानी आता है जिसकी वजह से गांव के लोग इसका कम उपयोग करते हैं।
मिली जानकारी के मुताबिक फणसपाड़ा के ग्रामीणों के लिए जिला स्वास्थ्य विभाग की तरफ से कसारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक मेडिकल टीम नियुक्त की गई है। घर के सभी लोगों का परीक्षण शुरू हो गया है।
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स्वास्थ्य विभाग की तरफ से कहा गया है कि गैस्ट्रो के रोगियों को नियंत्रित किया जा रहा है और किसी को भी अफवाहों पर विश्वास नहीं करना चाहिए चिकित्सा अधिकारी डॉ. प्रिया म्हात्रे, डॉ. आशु शुक्ला के मार्गदर्शन में साथ निर्मूलन टीम काम कर रही है।
फणसपाड़ा के रहने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि शहापुर तालुका के सुदूर इलाकों के गांव अभी भी कुएं के पानी पर निर्भर हैं। मानसून के दौरान हमारे गांव में महामारी फैलने की प्रबल संभावना रहती है। ग्राम पंचायत और पंचायत समिति की तरफ से कोई उपाय नहीं किए जाते हैं। इसलिए मानसून पूर्व तैयारियों को केवल कागजो पर नहीं, बल्कि व्यवहार में लाना आवश्यक है। ऐसी मौतों से हमारे आदिवासी भाई पूरी तरह से डरे हुए हैं और सरकार को स्वच्छ जल उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिए।






