
देवउठनी एकादशी के दिन अवश्य करें ये उपाय (सौ.सोशल मीडिया)
Dev uthani ekadashi ke upay 2025: शनिवार, 1 नवंबर को देवउठनी एकादशी मनाई जा रही है। सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है। खासतौर पर, कार्तिक महीने में पड़ने वाली एकादशी यानी देवउठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है।
हिन्दू मान्यता के अनुसार, देवउठनी एकादशी हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर मनाई जाती है। यह पावन दिन चातुर्मास की समाप्ति और शुभ-मांगलिक कार्यों की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।
ज्योतिषियों के अनुसार, हिंदू धर्म में देवउठनी एकादशी का महत्व इसलिए अधिक है, क्योंकि इस दिन सृष्टि के संचालक भगवान श्रीहरि विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागकर संसार का कार्यभार संभालते हैं।
ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार, देवउठनी एकादशी के दिन कुछ ज्योतिष उपाय करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है। आइए जान लेते हैं इन उपायों के बारे में-
ज्योतिषियों के अनुसार, देवउठनी एकादशी का सभी एकादशियों में बड़ी एवं श्रेष्ठ होती है। कहा जाता है कि, इस दिन रात में घर के मुख्य दरवाजे के दोनों तरफ गाय के घी के दीपक जलाना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है, सुख-शांति बनी रहती है और परिवार में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
कहते हैं, इस दिन घर के मुख्य दरवाजे के अलावा, पीपल पेड़ के नीचे दीपक जलाना भी बड़ा उत्तम एवं शुभ होता है। देवउठनी एकादशी की रात पीपल के पेड़ के नीचे एक दीपक जरूर जलाएं और सात बार उसकी परिक्रमा करनी चाहिए। मान्यता है ऐसा करने से आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है और अचानक धन प्राप्ति के योग बनते हैं।
देवउठनी एकादशी की रात रसोईघर में भी एक घी का दीपक जलाना चाहिए, क्योंकि यह माता अन्नपूर्णा का पवित्र स्थान होता है। मान्यता है कि एकादशी पर किचन में दीपक जलाने से घर में अन्न का भंडार हमेशा भरा रहता है।
देवउठनी एकादशी पर तुलसी पूजा का विशेष महत्व हैं। शाम के समय तुलसी के पास घी के पांच दीपक जरूर जलाएं। तुलसी माता को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है, इसलिए एकादशी की शाम तुलसी के पास दीपक जलाने से दांपत्य जीवन में सुख-शांति आती है और लक्ष्मी जी की कृपा भी बनी रहती है।
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दीपज्योति: परब्रह्म: दीपज्योति: जनार्दन:।
दीपोहरतिमे पापं संध्यादीपं नामोस्तुते।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखं सम्पदां।
शत्रुवृद्धि विनाशं च दीपज्योति: नमोस्तुति।।






