एकनाथ शिंदे (सोर्स:-सोशल मीडिया)
मुंबई: महाराष्ट्र में इस साल होने विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य भर की राजनीति में गर्माहट है। सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी दावेदारी साबित करने के में कोई कसर नहीं छोड़ रही, लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले सीएस एकनाथ शिंदे सरकार की मुश्किलें थोड़ी बढ़ती हुई नजर आ रही है। जहां सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे सरकार को लाड़ली बहना योजना को लेकर चेतावनी दी है।
लाड़ली बहना योजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे सरकार को चेतावनी दी है कि वह दशकों से लंबित भूमि मुआवजे का जल्द से जल्द निपटारा करे, नहीं तो लाडली बहन योजना समेत मुफ्त बीज की कई योजनाएं बंद हो जाएंगी।
चलिए पहले आपको बताते है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फटकार से शिंदे सरकार की टेंशन क्यों बढ़ने वाली है? आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लाड़ली बहना योजना शिंदे सरकार के लिए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। जहां बीते साल मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में बिगड़ते हालात के बीच लाड़ली बहनों ने बीजेपी की नईया डूबने से बचाई थी।
ये भी पढ़ें:-अरविंद केजरीवाल को आज भी नहीं मिली सुप्रीम कोर्ट से राहत, 23 अगस्त को अगली सुनवाई
इसी बात को मद्देनजर रखते हुए एनडीए सरकार ने महाराष्ट्र में लाड़ली बहना योजना का मास्टर स्ट्रोक खेला है। ऐसे हालात में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा शिंदे सरकार को दी गई ये चेतावनी विधानसभा चुनाव के नजरिए से घातक हो सकता है।
मिली जानकारी के अनुसार बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से 28 अगस्त तक मुआवजा भुगतान के लिए उचित योजना पेश करने को कहा है, और ऐसा नहीं करने पर सरकारी योजनाओं पर सख्त कार्रवाई की जा सकती है।
इसी के साथ इस मामले में महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार को कहा था कि मुख्य सचिव एक बैठक में व्यस्त हैं और आज यानी बुधवार को कहा कि मुख्य सचिव फिलहाल स्वतंत्रता दिवस की छुट्टियों पर हैं। इसलिए उन्हें राहत दी जानी चाहिए। जिसके बाद कोर्ट ने शिंदे सरकार को एक पखवाड़े की मोहलत दी है।
चलिए अब आपको मामला विस्तार से बताते है, तो हमें ऐसा बताया गया कि न्यायमूर्ति भूषण एस गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने करीब 6 दशक पहले भूमि अधिग्रहण के मुआवजे को अब तक लंबित रखने के लिए सरकार की खिंचाई की। जहां महाराष्ट्र सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण मुआवजे पर कोई संतोषजनक योजना अदालत में पेश नहीं किए जाने पर अदालत ने फिर सरकार को साफ शब्दों में चेतावनी दी।
ये भी पढ़ें:-जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में एक आर्मी ऑफिसर शहीद, सर्च ऑपरेशन जारी
मिली जानकारी के अनुसार न्यायमूर्ति गवई ने सरकार के समक्ष सवाल उठाया कि 37 करोड़ रुपये के प्रस्ताव के बाद आपने अब तक केवल 16 लाख रुपये का भुगतान क्यों किया? और इस अधिग्रहित भूमि के बदले आपने वन भूमि क्यों आवंटित की?
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 31ए 1961 में लागू था। अगर हम आज मुआवजा भुगतान का आदेश देते हैं, तो क्या आपने सोचा है कि यह कितना होगा? वन और भूमि संरक्षण मामलों की सुनवाई के दौरान पुणे जिले के एक किसान ने कोर्ट में याचिका दायर की।