मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे (pic credit; social media)
Nishikant Dubey Thane MNS Poster: हिंदी अनिवार्यता के खिलाफ लोगों की आवाज उठने के बाद सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा। सांसद निशिकांत दुबे ने इसे लेकर मनसे प्रमुख राज ठाकरे पर निशाना साधा था। मनसे प्रमुख ने बयान का जवाब पोस्टर से दिया। ठाणे में निशिकांत दुबे को लेकर पोस्टर लगाए गये है, जिसमें उन्हें समुद्र में डूबते हुए दर्शाया गया है।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने मराठी भाषा को लेकर विवादित बयान देने के लिए झारखंड के सांसद निशिकांत दुबे की ठाणे में कड़ी आलोचना की है। दुबे ने कहा था कि, “हम मराठी लोगों को एक ही झटके में मार देंगे।” उनके इस बयान से महाराष्ट्र में गुस्से की लहर भड़क उठी
दुबे के इस मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने मीरा-भायंदर में एक रैली में प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, “दुबे, मुंबई आओ, तुम्हें समुद्र में दुबे दुबे मार देंगे।” राज ठाकरे के इस बयान के बाद, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना एक्टिव हो गई। गुरुवार को ठाणे शहर के अध्यक्ष स्वप्निल महेंद्राकर और मनसे पदाधिकारियों द्वारा शहर के नितिन कंपनी चौक पर एक बड़ा कार्टून पोस्टर लगाया गया।
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इस पोस्टर में ‘दुबे’ को समुद्र में डूबते हुए दिखाया गया है। उनके बयान को व्यंग्यात्मक रूप से ध्यान में रखा गया है।पोस्टर पर साफ शब्दों में लिखा है, इसी तरह हिंदी की अनिवार्यता को कुचला जाएगा। जो भी महाराष्ट्र में हिंदी को जबरन थोपने की नीति अपनाएगा, उसका यही हाल होगा।
निशिकांत दुबे झारखंड से सांसद हैं। समग्र राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में झारखंड का योगदान बहुत कम है, जबकि महाराष्ट्र देश में सबसे बड़ा आर्थिक योगदानकर्ता राज्य है। यह स्पष्ट होता जा रहा है कि ऐसी स्थिति में भाषा के प्रति दुर्भावना दिखाना और उसके बारे में विवादास्पद बयान देना केवल दुर्भावना और हताशा से प्रेरित है।
लोगों के मन में यह भावना है कि दुबे महाराष्ट्र में भाषाई विवाद भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। राज ठाकरे ने बार-बार सभी से मराठी सीखने और उसका इस्तेमाल करने का अपील की है। राज ठाकरे ने कहा था कि महाराष्ट्र में रहने वालों के लिए मराठी जानना, सीखना, समझना जरूरी है। साथ ही मराठी भाषा का सम्मान करना सभी का कर्तव्य है।
इसके अलावा मनसे नेता राज ठाकरे यह भी स्पष्ट किया कि कक्षा 1 से 5 तक के स्कूली पाठ्यक्रम में हिंदी को अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए। इस मांग के अनुरूप मनसे ने सरकार पर दबाव बनाया और उसे हिंदी को अनिवार्य करने के सरकारी फैसले को वापस लेने के लिए मजबूर किया।दुबे के बयान ने एक बार फिर महाराष्ट्र में भाषाई पहचान के मुद्दे को सामने ला दिया है। इस मामले ने एक बार फिर मनसे के रुख और लोगों की भावनाओं को सामने ला दिया है।