पुलिस पाटिल चयन प्रक्रिया रहेगी रद्द (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Nagpur News: नागपुर पुलिस पाटिल की चयन प्रक्रिया के दौरान सफल उम्मीदवार नियुक्त किए गए किंतु बाद में मौखिक साक्षात्कार में अनियमितताएं होने का हवाला देते हुए राज्य सरकार की ओर से इन नियुक्तियों को रद्द कर दिया गया। इसे चुनौती देते हुए आशीष हरडे एवं अन्य परीक्षार्थियों के रूप में कुल 44 लोगों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
इस पर दोनों पक्षों की दलीलों के बाद हाई कोर्ट ने सरकार के फैसले पर मुहर लगाते हुए याचिकाएं खारिज कर दीं। कोर्ट का मानना था कि चयन प्रक्रिया, विशेष रूप से मौखिक साक्षात्कार के दौरान हुईं अनियमितताओं और दोषपूर्ण समिति के गठन के कारण पूरी चयन प्रक्रिया दूषित हो गई थी।
पुलिस पाटिल की नियुक्ति के लिए 16 मार्च, 2023 को विज्ञापन जारी किया गया था। लिखित परीक्षा 8 और 9 अप्रैल, 2023 को आयोजित की गई थी। 10 और 11 अप्रैल, 2023 को मौखिक साक्षात्कार हुए और 12 अप्रैल, 2023 को नियुक्ति आदेश जारी किए गए थे। कुछ असफल उम्मीदवारों द्वारा चयन प्रक्रिया, विशेष रूप से मौखिक साक्षात्कार में कथित भ्रष्टाचार की शिकायत करने के बाद भंडारा के जिलाधिकारी द्वारा एक जांच का आदेश दिया गया था। मई 2023 की जांच रिपोर्ट में पाया गया कि चयन प्रक्रिया निष्पक्ष तरीके से आयोजित नहीं की गई थी। इसके परिणामस्वरूप 4 जुलाई, 2023 को सफल उम्मीदवारों के खिलाफ बर्खास्तगी आदेश जारी किए गए थे।
सफल उम्मीदवारों ने महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण (MAT) के समक्ष इन आदेशों को चुनौती दी थी। मैट ने पहले बर्खास्तगी आदेशों को 5 अक्टूबर, 2023 को रद्द कर दिया था और उम्मीदवारों को बहाल करने का निर्देश दिया था।
हालांकि असफल उम्मीदवारों द्वारा दायर रिट याचिकाओं के माध्यम से यह मामला 22 अप्रैल, 2025 को न्यायाधिकरण को वापस भेज दिया गया था। पुन: सुनवाई के बाद मैट ने 25 जुलाई, 2025 को मूल आवेदनों को खारिज कर दिया, यह मानते हुए कि चयन प्रक्रिया और नियुक्तियों को रद्द करने के राज्य के फैसले में कोई गलती नहीं थी। इसी निर्णय को सफल उम्मीदवारों ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
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कोर्ट ने पाया कि लिखित परीक्षा और उसके परिणाम की घोषणा तक कोई भ्रष्टाचार या अनियमितता के आरोप नहीं थे। समस्या मौखिक साक्षात्कार के आयोजन और साक्षात्कार समिति के गठन के चरण से उत्पन्न हुई। 23 अगस्त, 2011 के सरकारी प्रस्ताव के अनुसार जिन सदस्यों को साक्षात्कार समिति की अध्यक्षता करनी थी, उन्होंने वास्तव में ऐसा नहीं किया। इसके बजाय उनके प्रतिनिधियों ने कार्यभार संभाला।
उदाहरण के लिए भंडारा के उप-विभागीय पुलिस अधिकारी की जगह पुलिस निरीक्षक ने प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया। कोर्ट ने माना कि जब किसी कार्य को एक विशेष तरीके से करना अनिवार्य होता है तो उसे उसी तरीके से किया जाना चाहिए। अधिकारों का इस प्रकार प्रत्यायोजन स्वीकार्य नहीं था और यह पूरे चयन प्रक्रिया को दूषित करता है।